इंदौर में डिलीवरी बॉय को संताक्लॉस की ड्रेस में काम करने पर हुआ विरोध, हिंदू जागरण मंच ने रोका

क्रिसमस का त्योहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया गया। इस दिन लोग चर्च में एकत्रित होकर एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं। लेकिन इस अवसर पर इंदौर शहर से एक अजीब घटना सामने आई। ग्राहकों को खुश करने के लिए एक डिलीवरी बॉय ने सांता क्लॉज़ के कपड़े पहने थे और डिलीवरी के लिए निकला था, लेकिन उसे रास्ते में हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं ने रोका और उसके कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया।
हिंदू जागरण मंच का आरोप
हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि इस प्रकार के कपड़े पहनकर हिंदू त्योहारों पर कोई संदेश नहीं दिया जाता, जबकि ईसाई और मुस्लिम त्योहारों पर डिलीवरी बॉय को ऐसे प्रचार करने की अनुमति दी जाती है। मंच के कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाया कि जब हिंदू त्योहार होते हैं तो डिलीवरी बॉय को केसरिया या श्रीराम के रूप में क्यों नहीं भेजा जाता।
ज़ोमाटो का निर्देश और डिलीवरी बॉय की प्रतिक्रिया
असल में, 25 दिसंबर को क्रिसमस के दिन, फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म ज़ोमाटो ने अपने डिलीवरी स्टाफ को सांता क्लॉज़ का ड्रेस पहनकर डिलीवरी करने का निर्देश दिया था। इसी कारण एक डिलीवरी बॉय सांता क्लॉज़ का ड्रेस पहनकर डिलीवरी करने के लिए निकला। लेकिन जब हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं ने उसे रास्ते में देखा, तो उन्होंने उसे रोक लिया। एक कार्यकर्ता ने डिलीवरी बॉय से पूछा कि क्या वह हिंदू त्योहारों पर केसरिया कपड़े पहनकर डिलीवरी करता है? और साथ ही यह भी पूछा कि जब हिंदू त्योहार होते हैं तो वह श्रीराम के कपड़े पहनकर क्यों नहीं डिलीवरी करता।
डिलीवरी बॉय ने जवाब दिया कि उसे कंपनी द्वारा क्रिसमस के दिन सांता क्लॉज़ का ड्रेस पहनने के लिए दिया गया था। उसने यह भी बताया कि यह किसी प्रकार का धार्मिक संदेश देने का उद्देश्य नहीं था, बल्कि एक सामान्य डिलीवरी कार्य था जो उसे कंपनी द्वारा सौंपा गया था।
हिंदू जागरण मंच का तर्क
हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं ने कहा कि अगर धार्मिक संदेश देने का उद्देश्य था, तो वह संदेश केवल क्रिसमस और मुस्लिम त्योहारों तक ही क्यों सीमित है? उनका कहना था कि यदि इस प्रकार के ड्रेस पहनकर संदेश देना आवश्यक है, तो इसे हिंदू त्योहारों पर भी किया जाना चाहिए। उनका यह सवाल था कि जब हिंदू त्योहार होते हैं, तो क्यों नहीं डिलीवरी बॉय को केसरिया या श्रीराम के कपड़े पहनकर संदेश देने के लिए भेजा जाता?
सांस्कृतिक संवेदनशीलता का मुद्दा
यह घटना सांस्कृतिक संवेदनशीलता का एक बड़ा मुद्दा बन गई है। हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं का यह आरोप था कि क्रिसमस के दिन सांता क्लॉज़ के कपड़े पहनने को धार्मिक प्रचार के रूप में देखा जा सकता है, जो हिंदू त्योहारों के प्रति उपेक्षात्मक है। उनका कहना था कि अगर संदेश देने का उद्देश्य है, तो वह हर धर्म और संस्कृति में समान रूप से किया जाना चाहिए।
क्रिसमस के महत्व पर विचार
क्रिसमस का त्योहार ईसाई धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है, और सांता क्लॉज़ का पहनावा इस दिन का एक प्रमुख हिस्सा होता है। सांता क्लॉज़ का रूप बच्चों में खुशी और जश्न का प्रतीक माना जाता है, और यह त्योहार प्रेम, भाईचारे और सौहार्द का संदेश देता है। ऐसे में एक डिलीवरी बॉय का सांता क्लॉज़ के कपड़े पहनकर काम पर जाना, एक सामान्य परंपरा का पालन करना था, जो कि कंपनी के द्वारा उसे निर्देशित किया गया था।
सामाजिक और धार्मिक सेंसिटिविटी
इस घटना ने यह सवाल भी उठाया है कि क्या सभी धार्मिक त्योहारों का सम्मान एक जैसा होना चाहिए। क्या हमें यह नहीं समझना चाहिए कि हर धर्म और संस्कृति का अपना महत्व है और उसे उसी तरह मनाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, जैसा वह चाहें? क्रिसमस का दिन ईसाई धर्म के अनुयायियों के लिए विशेष होता है, तो क्या हमें इस पर भी किसी प्रकार की आपत्ति करनी चाहिए?
ज़ोमाटो की भूमिका और प्रतिक्रिया
ज़ोमाटो ने इस घटना पर कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन यह मामला सोशल मीडिया पर काफी चर्चा का विषय बन गया है। इस मामले ने यह सवाल भी खड़ा किया है कि क्या कंपनियों को इस प्रकार के परिधान और सांस्कृतिक संदर्भों का ध्यान रखते हुए अपने कर्मचारियों को निर्देश देना चाहिए। क्या हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कर्मचारियों को सांस्कृतिक या धार्मिक संवेदनाओं का ध्यान रखते हुए कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाए?
समाज में बढ़ती असहिष्णुता
यह घटना समाज में बढ़ती असहिष्णुता और धार्मिक संवेदनशीलता को भी उजागर करती है। जहां एक ओर विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों का आदान-प्रदान होना चाहिए, वहीं दूसरी ओर इस प्रकार की घटनाएं सामाजिक सौहार्द को चुनौती देती हैं। समाज में इस प्रकार के विवादों से बचने के लिए एक मजबूत संवाद की आवश्यकता है, जिसमें सभी धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनाओं का सम्मान किया जाए।
इस घटना ने यह सवाल उठाया है कि क्या हमें विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों का सम्मान करते हुए उन्हें मनाने की स्वतंत्रता देनी चाहिए? क्या हमें इस प्रकार की धार्मिक संवेदनशीलता के मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है? इसके साथ ही, यह भी आवश्यक है कि हर धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा को सम्मान दिया जाए और समाज में सामूहिक रूप से सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाए रखा जाए।