Indore: देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर के नए कुलपति होंगे आर.के. सिंघई: प्रो. अशुतोष मिश्रा को कड़ी टक्कर

Indore: देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर के नए कुलपति के रूप में आर.के. सिंघई की नियुक्ति की चर्चा जोरों पर है। प्रोफेसर सिंघई शिवपुरी से हैं और यह दूसरी बार होगा जब इंदौर विश्वविद्यालय की जिम्मेदारी किसी बाहरी व्यक्ति को सौंपी जा रही है। हालांकि, इस बारे में औपचारिक घोषणा अभी बाकी है, लेकिन शनिवार को राज्यपाल ने इंदौर विश्वविद्यालय के कुलपति पद के तीन मुख्य दावेदारों से मुलाकात की। इन दावेदारों में इंदौर के प्रोफेसर अशुतोष मिश्रा, आर.के. सिंघई और बनारस के एक प्रोफेसर शामिल थे। वर्तमान में इंदौर विश्वविद्यालय की कुलपति रेनु जैन हैं, जिन्होंने चार साल पहले यह पद संभाला था।
रेनु जैन का कार्यकाल और चुनौतियाँ
रेनु जैन को तब कुलपति नियुक्त किया गया था जब उनके पूर्ववर्ती नरेन्द्र धाकड़ के कार्यकाल में हुई CET (कॉमन एंट्रेंस टेस्ट) में अनियमितताओं के कारण धारा 52 के तहत कार्रवाई की गई थी। इसके बाद रेनु जैन को फिर से कुलपति बनाया गया और उन्होंने इंदौर विश्वविद्यालय में अपनी सेवाएँ दीं। उनका कार्यकाल अब समाप्त हो चुका है, और कुलपति के पद के लिए पाँच प्रमुख प्रोफेसरों का साक्षात्कार लिया गया है।
आर.के. सिंघई की नियुक्ति और बाहरी व्यक्ति की जिम्मेदारी
इंदौर विश्वविद्यालय के इतिहास में यह दूसरी बार है जब विश्वविद्यालय के कुलपति पद के लिए किसी बाहरी व्यक्ति को जिम्मेदारी सौंपी जा रही है। आर.के. सिंघई, जो शिवपुरी से हैं, इस प्रतिष्ठित पद के लिए सबसे प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। उनके अनुभव और प्रशासनिक कौशल के आधार पर यह माना जा रहा है कि वह विश्वविद्यालय को नई दिशा में ले जाने में सक्षम होंगे।
प्रो. अशुतोष मिश्रा: एक प्रमुख दावेदार
हालांकि, इस पद के लिए इंदौर के प्रोफेसर अशुतोष मिश्रा भी एक मजबूत दावेदार हैं। उन्होंने पहले भी कार्यवाहक कुलपति के रूप में सेवाएँ दी हैं और संघ की पहली पसंद भी हैं। इसके बावजूद, आर.के. सिंघई का नाम कुलपति पद के लिए लगभग तय माना जा रहा है। मिश्रा का प्रशासनिक अनुभव और उनके शैक्षणिक योगदान ने उन्हें इस पद के लिए योग्य बनाया है, लेकिन बाहरी उम्मीदवार के चयन की प्रक्रिया ने स्थिति को बदल दिया है।
जैन समुदाय का प्रभुत्व
इस बात पर भी व्यापक चर्चा हो रही है कि इंदौर विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर लगातार तीसरी बार जैन समुदाय से किसी व्यक्ति को जिम्मेदारी दी जा रही है। इससे पहले, नरेन्द्र धाकड़ और फिर रेनु जैन ने कुलपति पद पर अपनी सेवाएँ दीं। जैन समुदाय का इस पद पर लगातार प्रभुत्व स्थापित होना एक विशेष चर्चा का विषय बना हुआ है।
इंदौर विश्वविद्यालय के सामने चुनौतियाँ
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय को नए कुलपति के नेतृत्व में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। विश्वविद्यालय की शैक्षणिक गुणवत्ता को बनाए रखना, अनुसंधान और विकास कार्यों को बढ़ावा देना, छात्रों के लिए बेहतर अवसर और सुविधाएँ उपलब्ध कराना जैसे मुद्दे प्रमुख हैं। इसके साथ ही, विश्वविद्यालय को राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिष्ठा को और भी बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।
आर.के. सिंघई जैसे अनुभवी और काबिल व्यक्ति के नेतृत्व में यह उम्मीद की जा रही है कि विश्वविद्यालय इन चुनौतियों का सामना प्रभावी तरीके से कर पाएगा। साथ ही, उनके प्रशासनिक अनुभव से विश्वविद्यालय को नए अवसर और विकास के मार्ग मिल सकते हैं।
कुलपति चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता
कुलपति पद के लिए साक्षात्कार प्रक्रिया पारदर्शिता और निष्पक्षता पर आधारित होनी चाहिए। इस प्रक्रिया में न केवल अकादमिक योग्यता, बल्कि प्रशासनिक अनुभव और नेतृत्व क्षमता भी महत्वपूर्ण मापदंड होते हैं। प्रोफेसर अशुतोष मिश्रा के समर्थकों का मानना है कि मिश्रा इस पद के लिए सबसे योग्य उम्मीदवार हैं, लेकिन बाहरी व्यक्ति को नियुक्त करने की प्रक्रिया ने एक नई दिशा में चयन को ले लिया है।
आर.के. सिंघई का योगदान और अपेक्षाएँ
आर.के. सिंघई से यह उम्मीद की जा रही है कि वे देवी अहिल्या विश्वविद्यालय को नई ऊँचाइयों तक ले जाएँगे। उनके नेतृत्व में विश्वविद्यालय में शैक्षणिक सुधार, प्रशासनिक पारदर्शिता और छात्र हितों को प्राथमिकता दी जाएगी। साथ ही, अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए जाने की संभावना है।
विशेष रूप से, विश्वविद्यालय में तकनीकी शिक्षा और आधुनिक शैक्षणिक विधियों को बढ़ावा देने पर जोर दिया जाएगा। आर.के. सिंघई का प्रशासनिक अनुभव और उनकी दूरदर्शिता विश्वविद्यालय को प्रगति की दिशा में ले जा सकती है।