सियाराम बाबा का निधन: खंडवा में निधन, 10 दिन से थे बीमार, अंतिम संस्कार 4 बजे होगा

खंडवा के भट्टायन बुजुर्ग में स्थित नर्मदा के किनारे सियाराम बाबा का निधन हो गया। वह 95 वर्ष के थे और पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। बुधवार को मोक्षदा एकादशी के दिन सुबह 6:10 बजे उन्होंने भगवान से मिलन किया। आज ही गीता जयंती भी है। उनके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया आज 4 बजे उनके आश्रम के पास की जाएगी।
बीमारी के बाद निधन
सियाराम बाबा पिछले 10 दिनों से बीमार थे और उनका इलाज इंदौर से आए डॉक्टरों द्वारा किया जा रहा था। बाबा का जन्म 1933 में गुजरात के भावनगर जिले में हुआ था। जब वह केवल 17 वर्ष के थे, तब उन्होंने सांसारिक जीवन से हटकर आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का निर्णय लिया था।
आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत
सियाराम बाबा ने अपने गुरु से कई वर्षों तक अध्ययन किया और विभिन्न तीर्थ स्थलों की यात्रा की। वह 1962 में भट्टायन पहुंचे और यहां उन्होंने एक पेड़ के नीचे मौन व्रत करके कठोर तपस्या की। आश्रम के अन्य सेवक बताते हैं कि उनका दैनिक दिनचर्या भगवान राम और माँ नर्मदा की भक्ति से शुरू होकर उसी भक्ति में समाप्त होता था।
भक्तों की सेवा में समर्पण
सियाराम बाबा का जीवन भक्तों की सेवा में समर्पित था। वह प्रतिदिन रामायण का पाठ करते थे और आश्रम आने वाले भक्तों को खुद चाय बनाकर प्रसाद के रूप में वितरित करते थे। इसके अलावा, वह अपने हाथों से चाय बनाकर भक्तों को वितरित करते थे।
ग्रामवासियों का प्यार और श्रद्धा
पास के गांव समेड़ा के रमेश्वर सिसोदिया ने बताया कि सियाराम बाबा की उम्र लगभग 95 वर्ष थी। बाबा के लिए गांव के पांच से छह घरों से खाना आता था, जिसे वह एक बर्तन में मिलाकर खाते थे। वह अपनी आवश्यकता के अनुसार खाना निकालते थे और बाकी का भोजन जानवरों और पक्षियों में बांट देते थे।
मंदिरों के लिए करोड़ों की दान
सियाराम बाबा का दिल भी भक्तों के लिए बहुत बड़ा था। उन्होंने मंदिरों के लिए कई बड़े दान किए। बाबा ने आश्रम के प्रभावित क्षेत्र के लिए प्राप्त हुए मुआवजे से 2 करोड़ 58 लाख रुपये प्रसिद्ध तीर्थ स्थल नागलवाड़ी मंदिर को दान किए थे। इसके अलावा, उन्होंने 20 लाख रुपये और पार्वती माता मंदिर को एक चांदी की छतरी भी दान की थी।
सियाराम बाबा की जीवन यात्रा
सियाराम बाबा का जीवन एक साधक और संत के रूप में आदर्श था। उनका जीवन तपस्या, भक्ति और सेवा से भरपूर था। उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी नर्मदा भक्ति में बिताई और लाखों भक्तों के दिलों में अपनी छाप छोड़ी। उनका निधन न केवल उनके अनुयायियों के लिए, बल्कि सम्पूर्ण क्षेत्र के लिए एक बड़ी हानि है। उनके द्वारा किया गया दान और सेवा कार्य हमेशा याद रखा जाएगा।
सियाराम बाबा का जीवन हमें यह सिखाता है कि भक्ति, तपस्या और सेवा के द्वारा ही व्यक्ति समाज में सबसे अधिक सम्मान प्राप्त कर सकता है। उनके योगदान को हमेशा श्रद्धा और सम्मान के साथ याद किया जाएगा।