Bhopal के यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से लाए गए 337 टन कचरे की निपटान को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, सरकार से जवाब मांगा
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Bhopal के यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से पिथमपुर लाए गए 337 टन कचरे के निपटान को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की गई। यह कचरा रामकी कंपनी के कचरा जलाने वाले संयंत्र में जलाने के लिए लाया गया है। इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता चिन्मय मिश्रा द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की। याचिका में आरोप लगाया गया है कि सरकार कचरे के निपटान में पर्यावरणीय सुरक्षा मानकों का पालन नहीं कर रही है और न ही गांव के विस्थापन की कोई योजना बनाई गई है।
पिथमपुर में कचरे का जलाना और गांव का विस्थापन
चिन्मय मिश्रा के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि पिथमपुर के तरापुर गांव के पास रामकी कंपनी का कचरा जलाने वाला संयंत्र स्थित है। इस गांव के पास कचरा जलाने की योजना के बारे में सरकार ने अब तक कोई स्पष्ट योजना नहीं बनाई है। इसके अलावा, वकील ने यह भी कहा कि सरकार ने पर्यावरणीय मानकों की अनदेखी करते हुए कचरे को जलाने का निर्णय लिया है, और आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए भी कोई योजना नहीं बनाई गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर तीखी टिप्पणी की और सरकार से पूछा कि अगर कचरा जलाने के दौरान कोई घटना घटित होती है, तो सरकार क्या कार्रवाई करेगी और उसे रोकने के लिए क्या इंतजाम किए गए हैं?
कचरे के निपटान में पारदर्शिता की कमी
याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दायर अपनी याचिका में यह आरोप लगाया कि सरकार कचरे के निपटान में पारदर्शिता बरतने में विफल रही है। याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि पहले 10 टन कचरे को चुपचाप लाकर रामकी के संयंत्र में जलाया गया था। इसके पहले 2008 में इंदौर के कर्फ्यू के दौरान 40 टन कचरे को लाकर रामकी फैक्ट्री में जमीन में दफन कर दिया गया था।
याचिकाकर्ता ने अदालत में यह भी कहा कि कचरे को जलाने के दौरान वातावरण को होने वाले नुकसान का कोई आकलन नहीं किया गया है, और इस प्रक्रिया में संभावित दुर्घटनाओं से निपटने के लिए सरकार के पास कोई स्पष्ट योजना नहीं है।
कचरे का जलाना और पर्यावरणीय प्रभाव
यह कचरा यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से लाया गया है, जहां 1984 में हुए गैस त्रासदी के बाद से कई पर्यावरणीय मुद्दे सामने आए हैं। इस कचरे को जलाने से हवा, पानी और मिट्टी में प्रदूषण फैलने की संभावना है। कचरे के जलने से होने वाली जहरीली गैसों और प्रदूषण का असर सिर्फ पिथमपुर क्षेत्र पर नहीं, बल्कि आसपास के गांवों और शहरों पर भी पड़ सकता है।
याचिकाकर्ता ने इस मामले में यह भी कहा कि पिथमपुर में कचरे को दफनाने के कारण जल स्तर में भी प्रदूषण हो रहा है, जिससे न केवल स्थानीय जल स्रोतों को खतरा हो सकता है, बल्कि यह पूरे क्षेत्र के पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश और अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और राज्य सरकार से जवाब मांगा है और मामले की अगली सुनवाई 24 फरवरी को होगी। कोर्ट ने दोनों सरकारों को निर्देश दिया है कि वे कचरे के निपटान प्रक्रिया, पर्यावरणीय सुरक्षा मानकों का पालन, और गांव के विस्थापन के बारे में अपनी स्थिति स्पष्ट करें। इसके साथ ही, अदालत ने कचरे के जलाने के दौरान संभावित खतरे और आपातकालीन प्रबंधन योजनाओं पर भी सरकार से जवाब तलब किया है।
केंद्र और राज्य सरकार की जिम्मेदारी
यह मामला सिर्फ कचरे के निपटान से संबंधित नहीं है, बल्कि यह पूरे पर्यावरणीय और सामाजिक सुरक्षा की चिंता से जुड़ा हुआ है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि कचरे को निपटाने की प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित हो और पर्यावरणीय मानकों का पालन किया जाए। इसके साथ ही, प्रभावित गांवों के विस्थापन के लिए ठोस योजना बनानी होगी ताकि स्थानीय लोगों को किसी भी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े।
कचरे के निपटान की समस्याएं और समाधान
कचरे का सही तरीके से निपटान न केवल सरकार की जिम्मेदारी है, बल्कि यह भी महत्वपूर्ण है कि नागरिक समाज इस मुद्दे को गंभीरता से समझे और इसके समाधान के लिए सक्रिय रूप से काम करें। विशेषज्ञों का मानना है कि कचरे के निपटान के दौरान पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन और उसे कम करने के उपायों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके लिए उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे प्रदूषण को कम किया जा सके और कचरे के निपटान में पारदर्शिता बनी रहे।
भोपाल के यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से लाए गए कचरे के निपटान को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई ने यह साबित कर दिया है कि सरकार को इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और सुरक्षा मानकों का पालन करना चाहिए। अदालत ने सरकार से स्पष्ट जवाब मांगा है, और इस मामले में अगली सुनवाई 24 फरवरी को होगी। अब यह देखना होगा कि सरकार इस मुद्दे पर क्या कार्रवाई करती है और क्या कचरे के निपटान के लिए बेहतर योजना बनाई जाती है।