Chhattisgarh: सर्गीपाल गांव में बेल पूजा का अनोखा अनुष्ठान, खुद प्रिंस ऑफ बस्तर आते हैं धूमधाम से
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में दशहरा महोत्सव का विशेष महत्व है। इस महोत्सव के दौरान कई अनूठे अनुष्ठान किए जाते हैं, जिनमें से एक है बेल पूजा या बेल जात्रा। यह विशेष अनुष्ठान 10 अक्टूबर, गुरुवार को सर्गीपाल गांव में आयोजित किया गया, जहां बेल के पेड़ और उसमें उगने वाले दो बेल फल की पूजा की गई। इस अनूठे अनुष्ठान में बस्तर के राजकुमार खुद शिरकत करते हैं और इसे धूमधाम से मनाया जाता है।
बेल पूजा का महत्व
सर्गीपाल गांव, जो जगदलपुर शहर से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, में एक पुराना बेल का पेड़ है, जिसमें एक नहीं बल्कि दो फल एक साथ उगते हैं। प्राचीन परंपरा के अनुसार, इस बेल के पेड़ और बेल फलों की पूजा का कार्य राजकुमार द्वारा किया जाता है। बस्तर क्षेत्र के लोग इस अनुष्ठान को एक शादी समारोह की तरह मानते हैं, जहां राजा का स्वागत और विदाई धूमधाम से की जाती है।
प्राचीन कथा का संदर्भ
बस्तर राजपरिवार के राजकुमार कमलचंद भंजदेव ने बताया कि यह अनुष्ठान एक विवाह उत्सव से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि बस्तर के चालुक्य वंश के राजा शिकार पर निकले थे। जब वह सर्गीपाल गांव के बेल के पेड़ के नीचे पहुंचे, तो उन्होंने वहां खड़ी दो सुंदर कन्याओं से विवाह करने की इच्छा प्रकट की। कन्याओं ने राजा से कहा कि उन्हें विवाह के लिए बारात लानी होगी।
अगले दिन, जब राजा बारात के साथ वहां पहुंचे, तो कन्याओं ने बताया कि वे स्वयं माँ माणिकेश्वरी और दंतेश्वरी हैं। उन्होंने मजाक में राजा से कहा कि उन्हें बारात लाने की आवश्यकता नहीं है। इस पर राजा शर्मिंदा हुए और अपने पूर्व व्यवहार के लिए क्षमा मांगी। इसके बाद राजा ने उन्हें दशहरा महोत्सव में शामिल होने का निमंत्रण दिया। तभी से यह अनुष्ठान शुरू हुआ।
देवी-देवताओं का प्रतीक
यह परंपरा, जो कि कई सदियों पुरानी है, आज भी बस्तर में निभाई जाती है। राजकुमार कमलचंद भंजदेव ने बताया कि बेल फल के दो जोड़े दोनों देवी-देवताओं का प्रतीक माने जाते हैं। हर साल, बेल पूजा के दौरान, राजकुमार स्वयं इस गांव में आते हैं और पादरी से बेल फल का जोड़ा आदरपूर्वक स्वीकार करते हैं। फिर इसे जगदलपुर के माँ दंतेश्वरी के मंदिर में पूजा के लिए रखा जाता है।
उत्सव का माहौल
बेल पूजा के दौरान सर्गीपाल गांव में एक उत्सव का माहौल बना रहता है। राजा का स्वागत और देवी का विदाई दोनों ही अद्वितीय दृश्य होते हैं। लोग पारंपरिक वेशभूषा में सजते हैं और उत्साह के साथ इस अनुष्ठान में भाग लेते हैं। इस दौरान, विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं, जो इस परंपरा को और भी रंगीन बनाते हैं।
बस्तर दशहरा की अन्य विशेषताएँ
बस्तर दशहरा महोत्सव में 75 दिनों तक चलने वाले अनगिनत अद्वितीय और आश्चर्यजनक अनुष्ठान होते हैं। इनमें से एक प्रमुख अनुष्ठान बेल पूजा है, जो सप्तमी के दिन मनाया जाता है। इसके बाद, शुक्रवार की रात को महा अष्टमी पर निशा जात्रा का आयोजन किया जाएगा, जिसमें विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ शामिल होंगी।
बस्तर दशहरा महोत्सव केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं का प्रतीक है। इस महोत्सव के माध्यम से बस्तर की समृद्ध संस्कृति को जीवित रखा जाता है, और यह स्थानीय लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण सामाजिक समारोह बन जाता है।