छत्तीसगढ़ में होगा कड़ा कानून, धर्मांतरण को रोकने के लिए मुख्यमंत्री ने उठाया बड़ा कदम

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विशुन देव साई ने रविवार को कहा कि उनकी सरकार राज्य में आदिवासियों और अन्य लोगों के अवैध धार्मिक रूपांतरण को रोकने के लिए एक नया और सख्त कानून लाएगी। मुख्यमंत्री ने पीटीआई से एक साक्षात्कार में कहा कि रूपांतरण रोकने के लिए उन आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर करने का प्रस्ताव भी है जो धर्म परिवर्तन करते हैं।
मुख्यमंत्री साई ने कहा, “भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। किसी व्यक्ति को अपने विश्वास के अनुसार धर्म अपनाने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। लेकिन कुछ लोग खासकर गरीबों को शिक्षा और अन्य सुविधाओं के बहाने धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं और उन्हें गुमराह कर रहे हैं। यह गलत है और इसे रोका जाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि यदि रूपांतरण करने वाले आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर कर दिया जाए तो यह धर्म परिवर्तन को रोकने में मदद करेगा।
कड़ी कानून से रूपांतरण रोका जाएगा
मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ में पहले से ही अवैध धार्मिक रूपांतरण के खिलाफ कानून है, लेकिन उसे और मजबूत करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, “हम अन्य राज्यों में लागू कानूनों का अध्ययन कर रहे हैं और जल्द ही एक सख्त कानून बनाएंगे जिससे धर्म परिवर्तन को रोका जा सके।” हालांकि, मुख्यमंत्री ने यह नहीं बताया कि यह नया बिल विधानसभा में कब पेश किया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि संविधान में एक प्रावधान है कि यदि अनुसूचित जाति (SC) के लोग धर्म परिवर्तन करते हैं, तो उन्हें उनके वर्ग के तहत मिलने वाली सुविधाएं नहीं मिलतीं। लेकिन यह प्रावधान अनुसूचित जनजाति (ST) के मामले में लागू नहीं होता। उन्होंने कहा, “यदि कोई आदिवासी कोई अन्य धर्म अपनाता है, तो उसे अनुसूचित जनजाति के समुदाय के द्वारा दी जाने वाली सुविधाएं मिलती रहती हैं, साथ ही अल्पसंख्यक वर्ग के लाभ भी उसे मिलते हैं।” बस्तर और सूरजुगा के आदिवासी इस बात की मांग कर रहे हैं कि धर्म परिवर्तन करने वाले सभी आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति से बाहर किया जाए।
250 से अधिक सांसदों ने संसद में दी है यह आवेदन
साई ने कहा कि आदिवासी समाज लगातार इस मांग को उठा रहा है। उन्होंने बताया कि बिहार से कांग्रेस के सांसद कर्तिक ओरोन ने संसद में यह कहा था कि धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति के तहत मिलने वाली सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए। उनके अनुसार, 250 से अधिक सांसदों ने इस संबंध में संसद में आवेदन भी दिया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आदिवासी समाज इस मुद्दे पर बैठकें आयोजित कर और हस्ताक्षर करके यह मांग उठा रहा है।