Vikramotsav 2025 : इतिहास, विरासत और भव्य आयोजनों का महापर्व

Vikramotsav 2025: विक्रमोत्सव की शुरुआत वर्ष 1942 में हुई थी, जिसका उद्देश्य भारतीय समाज को उसके महान नायक राजा विक्रमादित्य और उनकी गौरवशाली गाथा से परिचित कराना था। यह उस समय का ऐसा ऐतिहासिक आयोजन था, जिसकी लोकप्रियता उज्जैन से लेकर मुंबई तक सुनाई और देखी जा सकती थी। इस महोत्सव के प्रारंभिक दौर में 114 रियासतों के राजा-महाराजाओं ने एकत्र होकर इसे भव्यता के साथ मनाना शुरू किया था।
पंडित सूर्यनारायण व्यास : विक्रमोत्सव के प्रणेता
पंडित सूर्यनारायण व्यास, जो 114 रियासतों के राजज्योतिषी थे, ने वर्ष 1940 में ‘विक्रम’ नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया। दो साल बाद, उन्होंने 114 रियासतों के राजा-महाराजाओं के सहयोग से विक्रम महोत्सव की शुरुआत की। इस आयोजन की लोकप्रियता इतनी अधिक थी कि उज्जैन से लेकर मुंबई तक इसे भव्यता के साथ मनाया जाने लगा।
इतना ही नहीं, पंडित व्यास ने महान अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के साथ फिल्म विक्रमादित्य का भी निर्माण किया। इस फिल्म ने दो बड़े कार्य किए—पहला, देशभर में लोगों को राजा विक्रमादित्य के इतिहास से अवगत कराया और दूसरा, हर साल विक्रमोत्सव में भाग लेने वालों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। इसके बाद, पंडित व्यास ने राजा विक्रमादित्य की कीर्ति को और बढ़ाने के लिए ‘विक्रम द्वि-शताब्दी महोत्सव’ का आयोजन भी शुरू किया।
ब्रिटिश सरकार को नहीं था विक्रमोत्सव पसंद
भारत छोड़ो आंदोलन से पहले प्रारंभ हुए विक्रमोत्सव में हिंदू राजा-महाराजाओं की भागीदारी ने ब्रिटिश सरकार को परेशान कर दिया था। इस आयोजन में हिंदू राजाओं की एकता ने ब्रिटिश प्रशासन और मुस्लिम शासकों को चिंतित कर दिया। ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड वेवेल ने इन्हें उकसाया, जिससे कई राजाओं ने विक्रम महोत्सव से दूरी बना ली।
ब्रिटिश शासन राजा विक्रमादित्य को काल्पनिक साबित करने के लिए निरंतर प्रयासरत था, लेकिन महोत्सव के दौरान ‘विक्रम स्मृति ग्रंथ’ प्रकाशित किया गया। यह ग्रंथ हिंदी, मराठी और अंग्रेजी में छपा और इसमें दुनिया भर के विद्वानों द्वारा विक्रमादित्य और कालिदास पर शोध आधारित लेख लिखे गए। इस 2000 पृष्ठों की पुस्तक ने यह प्रमाणित किया कि विक्रमादित्य केवल एक उपाधि नहीं, बल्कि ऐतिहासिक रूप से उज्जैन के एक प्रतापी सम्राट थे।
अब 125 दिनों तक चलेगा भव्य विक्रमोत्सव
वर्तमान में विक्रमोत्सव न केवल लोकप्रिय बल्कि एक भव्य महापर्व बन चुका है। इस वर्ष यह आयोजन मात्र 5 या 10 दिनों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे 125 दिनों तक मनाया जाएगा। यह उत्सव 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि से प्रारंभ होकर 30 जून 2025 तक चलेगा।
इस भव्य महोत्सव के अंतर्गत अनेक ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, जिनमें शामिल हैं :
- अनादि देव शिव पूजा : भगवान शिव के दिव्य रूप की आराधना
- विक्रम व्यापार मेला : पारंपरिक एवं आधुनिक व्यापारियों का संगम
- आदि शिल्प वस्त्र उद्योग प्रदर्शनी : हस्तकला और कुटीर उद्योग को प्रोत्साहन
- विक्रमादित्य वैदिक घड़ी ऐप का शुभारंभ : भारतीय वैदिक समय गणना को आधुनिक रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास
- आदि अनादि पर्व : संस्कृति, कला और आध्यात्मिकता का संगम
- उज्जयिनी नाटक और नृत्य महोत्सव : नाट्यशास्त्र पर आधारित भव्य नृत्य-नाटकों का मंचन
- शोध संगोष्ठी : विद्वानों द्वारा विक्रमादित्य के न्याय दर्शन पर विचार-विमर्श
- विक्रमादित्य न्याय विचारधारा संगोष्ठी : उनके न्याय और प्रशासनिक कौशल पर आधारित सम्मेलन
इस वर्ष यह आयोजन सिर्फ उज्जैन तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इंदौर, भोपाल और दिल्ली तक इसकी भव्यता देखी जाएगी।
राजा विक्रमादित्य की विरासत को जीवंत करने का प्रयास
विक्रमोत्सव केवल एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय गौरव, सभ्यता और न्याय की परंपरा को पुनर्जीवित करने का माध्यम भी है। जिस तरह यह उत्सव 1942 में आरंभ हुआ और तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद इसे रोकना संभव नहीं हुआ, उसी तरह आज यह महोत्सव नए आयाम स्थापित कर रहा है।
विक्रमोत्सव 2025 न केवल भारत के इतिहास प्रेमियों के लिए, बल्कि देश की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने वालों के लिए भी एक महत्वपूर्ण अवसर होगा। उज्जैन की ऐतिहासिक भूमि पर होने वाला यह महोत्सव न केवल राजा विक्रमादित्य के शौर्य और न्याय की गाथा को जीवंत करेगा, बल्कि भारत के सांस्कृतिक वैभव को भी प्रदर्शित करेगा।