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Rewa News: तालाब में तब्दील हुई बनकुइया की जमीनें, खनन माफियाओं का आतंक, मानक के विपरीत किया जा रहा क्रेशर का संचालन

Rewa. जिले के बेला बैद्यनाथ और बनकुइया इलाके में करीब सैकड़ों स्टोन क्रशर संचालित है लेकिन क्रशर संचालक क्रशर को चलाने के लिए निर्धारित मानकों का पालन नहीं कर पा रहे हैं जिससे स्थानीय ग्रामीण प्रभावित हैं। क्रशरों का संचालन मुख्य मार्गों से 50 से 100 मीटर के दायरों पर होना चाहिए लेकिन समस्त स्टोन क्रशर सड़क से सटकर ही संचालित हो रहे हैं। वहीं क्रशर में पत्थरों के पीसने से धूल उड़ती है जो धुंध बनकर आसपास के वातावरण में छा जाती है और ऐसे में प्रदूषण का फैलाव होता है जिससे लोग बेहाल होते हैं। इनसे अगर क्रशर में नियमों का पालन कराया जाए तो यह धूल ग्रामीणों के लिए समस्या ना बने। लेकिन संबंधित विभागीय के अधिकारी यहां पर्यावरण मानकों का पालन नहीं करा रहे हैं, क्रशर के बाउंड्री के भीतर पानी का छिड़काव भी नहीं हो रहा है। और यहां पेड़ भी नहीं लगाए गए हैं जबकि क्रशर परिसर में पौधारोपण किया जाना अनिवार्य किया गया है। संबंधित विभाग संचालन का लाइसेंस देते समय दिशा-निर्देशों का पालन कराने की प्रक्रिया कराते हैं, किंतु जैसे ही प्लांट चालू होता है मापदंडों का पालन कितना हो रहा है यह नहीं देखा जाता। ऐसी ही मनमानी बेला और बांकुइया क्षेत्र में लगे स्टोन क्रशर परिसरों में हो रही है। प्रदूषण की रोकथाम के लिए यहां कोई उपाय नहीं किए गए हैं  तथा प्रदूषण नियंत्रण विभाग शिकायतों के बावजूद ध्यान नहीं दे रहा है तथा खनिज विभाग के अधिकारी भी निरीक्षण करने तक ही सिमट कर रह गए हैं।

इस तरह होती है गड़बड़ी : जिले के बेला और बनकुइया क्षेत्र में लगे स्टोन क्रशर संचालकों ने आसपास के गांव में पत्थर की खदानें भी अवैध रूप से संचालित कर रखी है। जब भी जांच टीम खानापूर्ति के लिए जाती हैं तो खदानों में लगी गाड़ियां बंद हो जाती है। पत्थर उत्खनन के लिए जो जगह लीज पर दी गई है उन स्थानों के अलावा यहां के कई जगहों पर पत्थर का अवैध खनन चल रहा है। खुदाई से बड़ी गहरी खाहिंयां बन गई है जिससे दुर्घटनाएं होती रहती है अब नियम तो यह भी आ गए हैं कि कोई भूस्वामी भी बिना तहसील कार्यालय की अनुमति के बगैर खेत वा जमीन पर मशीनों से खुदाई नहीं करा सकता है। बावजूद इसके क्षेत्र के लिए अधिकृत खनिज निरीक्षक ग्रामीणों की शिकायत के बावजूद नियमानुसार कोई कार्रवाई क्रशर संचालक के ऊपर नहीं कर पाते हैं जिससे उनकी कार्यप्रणाली को लेकर सवाल खड़े होना भी लाजमी है।

बताया जा रहा है कि एक क्रशर तीन से चार किमी के आवासीय क्षेत्र को प्रभावित करता है। इतना ही नहीं पत्थर खदानों में काम करने वाले मजदूर और आसपास रहने वाले लोगों में सिलिकोसिस बीमारी होने की संभावना रहती है क्रशर से निकलने वाली धूल जमीन, पानी तथा आसपास की हरियाली पर दुष्प्रभाव डालती है। जिससे क्षेत्र में धूल डस्ट के कारण घरों की छत पर धूल की मोटी परत जमा रहती है और रखे पानी पर धूल जमा हो जाती है फसलों के ऊपर भी धूल बैठ जाती है जिससे पौधों की ग्रोथ पर असर पड़ रहा है। क्रशर के चारों तरफ ऊंची बाऊण्ड्रीवॉल और हरे परदे की दीवार होनी चाहिए वहीं डस्ट न उड़े लगातार पानी का छिड़काव होना चाहिए लेकिन इन पर अमल नहीं किया जा रहा है। 

आपको बता दें क्रशर मशीन चलने के दौरान गहरी धुंध आसपास छाई रहती है। क्रशर की धूल लोगों को बीमार भी कर रही है। इसके अलावा मुख्य मार्ग के पास संचालित क्रेशर से उड़ने वाली धूल राहगीरों और वाहन चालकों की आंख में भी चुभती है। बावजूद इसके इन क्रेशर मशीनों का संचालन प्रभावशाली लोगों द्वारा किये जाने के कारण प्रशासन का कोई भी जिम्मेदार विभाग इन पर कार्रवाई करने की हिम्मत नही जुटा पा रहा है।

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