छत्तीसगढ़ में नक्सलियों पर दबाव 38 लाख के इनामी 18 माओवादी हुए सरेंडर!

छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में लगातार चल रहे सुरक्षा बलों के अभियान और सरकार की पुनर्वास नीतियों का माओवादियों पर गहरा असर देखने को मिल रहा है। इसका नतीजा यह हुआ कि मंगलवार को सुकमा के पुलिस अधीक्षक कार्यालय में 18 माओवादियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। इनमें चार हार्डकोर माओवादी भी शामिल हैं। इन सभी पर कुल 38 लाख रुपये का इनाम घोषित था। पुलिस अधीक्षक किरण चव्हाण ने बताया कि आत्मसमर्पण करने वालों में आठ-आठ लाख के इनामी भास्कर उर्फ भोगम लक्ष भी शामिल हैं। साथ ही पांच और दो लाख के इनामी छह अन्य माओवादी भी आत्मसमर्पण करने वालों में हैं। सभी surrendered माओवादियों को प्रोत्साहन राशि दी गई और वे अब सरकार की पुनर्वास नीति का लाभ पाएंगे।
झारखंड में माओवादी तुलसी भुइयां मारा गया
झारखंड के पलामू जिले में सोमवार रात एक बड़े अभियान के तहत माओवादी क्षेत्रीय कमांडर तुलसी भुइयां को मार गिराया गया। यह अभियान पलामू पुलिस, सीआरपीएफ और झारखंड जगुआर की संयुक्त टीम ने हुसैनाबाद थाना क्षेत्र में चलाया। पुलिस को तुलसी भुइयां के पास से एक एसएलआर राइफल और मैगजीन बरामद हुई है। इस मुठभेड़ के दौरान माओवादी क्षेत्रीय कमांडर नितेश यादव, जिस पर 15 लाख का इनाम था, घायल होकर भाग निकला। मुठभेड़ में सुरक्षा बलों की ओर से करीब 300 राउंड गोलियां चलाई गईं
पलामू के आईजी ने दी जानकारी
पलामू के पुलिस महानिरीक्षक सुनील भास्कर ने बताया कि माओवादी क्षेत्रीय कमांडर नितेश यादव, जोनल कमांडर संजय यादव उर्फ गोद्राम उर्फ बुधराम और क्षेत्रीय कमांडर तुलसी भुइयां अपने दस्ता सदस्यों के साथ हुसैनाबाद थाना क्षेत्र में सक्रिय थे। सूचना मिलने पर सुरक्षा बलों ने इलाके को घेर लिया। मुठभेड़ के दौरान तुलसी भुइयां मारा गया। पिछले चार दिनों में पलामू में माओवादियों के खिलाफ लगातार अभियान चलाए जा रहे हैं और इसमें अब तक चार बड़े माओवादी मारे जा चुके हैं।
चार दिनों में चार माओवादी मारे गए
24 मई को लातेहार में सुरक्षा बलों ने 10 लाख के इनामी जेजेपीएम प्रमुख पप्पू लोहरा और सब-जोनल कमांडर प्रभात गंझू को मार गिराया। इसके अगले दिन यानी 25 मई की रात लातेहार जिले में ही 5 लाख के इनामी माओवादी मनीष यादव को सुरक्षा बलों ने ढेर कर दिया। और फिर अगले दिन यानी 26 मई को पलामू में तुलसी भुइयां को मारा गया। लगातार हो रही इन कार्रवाइयों से स्पष्ट है कि सुरक्षा बलों का दबाव बढ़ा है और माओवादी संगठन कमजोर हो रहे हैं। सरकार की विकास योजनाओं और पुनर्वास नीति का असर भी देखने को मिल रहा है जिससे माओवादी आत्मसमर्पण करने को मजबूर हो रहे हैं।