Nanaji Deshmukh: ग्राम स्वराज के प्रणेता और समाज सेवा के प्रेरणास्रोत

Nanaji Deshmukh भारतीय राजनीति और समाज सेवा के क्षेत्र में एक अद्वितीय व्यक्तित्व थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन देश और समाज के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। 27 फरवरी 2024 को उनकी 15वीं पुण्यतिथि के अवसर पर छत्रकूट में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें गृह मंत्री अमित शाह ने ‘नवीन राम दर्शन परियोजना’ का उद्घाटन किया। इस मौके पर नानाजी देशमुख के योगदान को याद करते हुए अमित शाह ने कहा कि उनका ग्राम स्वराज का सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है और आत्मनिर्भर गाँवों के निर्माण में प्रेरणादायक है।
नानाजी देशमुख का प्रारंभिक जीवन
नानाजी देशमुख का जन्म 11 अक्टूबर 1916 को महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के कडोली गाँव में हुआ था। उनका परिवार मराठी भाषी ब्राह्मण परिवार था। आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद उन्होंने शिक्षा ग्रहण करने के लिए कड़ा संघर्ष किया। अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए वे सब्जी बेचने का कार्य भी करते थे। उनके संघर्ष और लगन को देखकर सीकर के राव राजा ने उन्हें छात्रवृत्ति प्रदान की, जिससे उनकी शिक्षा जारी रही।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ाव
नानाजी देशमुख का झुकाव प्रारंभ से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की ओर था। वे संघ के विचारों से प्रेरित होकर समाज सेवा की दिशा में आगे बढ़े। 1940 के दशक में वे संघ के प्रचारक बने और उत्तर प्रदेश में संगठन को मजबूत करने का कार्य किया।
राजनीति में प्रवेश और जनसंघ का नेतृत्व
1967 में, वे भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बने और दिल्ली में कार्यभार संभाला। वे एक कुशल रणनीतिकार थे और उनकी कार्यकुशलता के कारण जनसंघ ने कई राज्यों में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई। 1977 में जब जनता पार्टी सत्ता में आई, तो उन्हें सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का प्रस्ताव मिला, लेकिन उन्होंने राजनीति से संन्यास लेकर समाज सेवा का मार्ग चुना।
ग्राम स्वराज और सामाजिक पुनर्निर्माण
नानाजी देशमुख का सबसे महत्वपूर्ण योगदान उनके ग्राम स्वराज अभियान से जुड़ा है। वे महात्मा गांधी और दीनदयाल उपाध्याय के विचारों से प्रेरित होकर ग्रामीण विकास के लिए कार्य करने लगे। उन्होंने चित्रकूट को अपनी कर्मभूमि बनाया और वहाँ कई विकास कार्य प्रारंभ किए।
उनकी प्रेरणा से ‘दीनदयाल शोध संस्थान’ की स्थापना हुई, जो आज भी ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। उन्होंने चित्रकूट में एक आत्मनिर्भर मॉडल गाँव विकसित किया, जहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और पर्यावरण संतुलन की दिशा में उल्लेखनीय कार्य हुए।
अंत्योदय और गरीबों के उत्थान की सोच
नानाजी देशमुख ने दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय सिद्धांत को अपने जीवन में उतारा। वे मानते थे कि समाज के सबसे निचले तबके के उत्थान से ही राष्ट्र की प्रगति संभव है। इस सोच के साथ उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार किया। उनका मानना था कि आत्मनिर्भर गाँव ही सशक्त भारत की नींव रख सकते हैं।
राज्यसभा और भारत रत्न सम्मान
1999 में उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया गया, जहाँ उन्होंने ग्राम विकास और ग्रामीण स्वराज से जुड़े कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया। उनका योगदान देखते हुए 2019 में भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। इस सम्मान के माध्यम से देश ने उनके योगदान को सम्मानित किया।
नानाजी देशमुख की विरासत
27 फरवरी 2010 को नानाजी देशमुख का देहांत हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवंत है। उनके द्वारा स्थापित संस्थाएँ और ग्राम विकास मॉडल आज भी समाज सेवा के लिए प्रेरणा देते हैं। चित्रकूट में उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी ग्रामीण विकास के लिए एक आदर्श उदाहरण हैं।
नानाजी देशमुख का जीवन त्याग, सेवा और राष्ट्र निर्माण का प्रतीक था। उन्होंने यह साबित किया कि बिना किसी पद के भी समाज सेवा की जा सकती है। उनका ग्राम स्वराज का विचार आज भी भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में प्रेरित करता है। उनका जीवन हम सभी के लिए एक प्रेरणा है, जो बताता है कि यदि सच्ची निष्ठा और समर्पण के साथ कार्य किया जाए तो समाज और राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया जा सकता है।