MP High Court: धार कलेक्टर सहित दो अधिकारियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने का आदेश; जानें पूरा मामला
MP High Court के इंदौर बेंच ने धार जिला कलेक्टर प्रियंक मिश्रा और जिला पंचायत के तत्कालीन मुख्य कार्यपालक अधिकारी श्रिंगार श्रीवास्तव के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने का आदेश दिया है। यह आदेश न्यायालय के आदेश का पालन न करने के कारण जारी किया गया है।
मामला क्या है?
इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील प्रसन्न भटनागर ने जानकारी दी कि याचिकाकर्ता मिथुन चौहान ग्राम पंचायत नलछा में ग्राम रोजगार सहायक के पद पर कार्यरत थे। 25 फरवरी 2017 को वे एक दिन के लिए बीमारी के कारण काम पर नहीं जा सके। एक दिन की अनुपस्थिति को misconduct मानते हुए, उन्हें बिना किसी जांच और सुनवाई के हटा दिया गया।
अपील का असफल होना
याचिकाकर्ता ने इस आदेश को चुनौती देते हुए अपील की, लेकिन उसकी अपील भी खारिज कर दी गई। इसके बाद उन्होंने 2019 में MP High Court के इंदौर बेंच में एक रिट याचिका दाखिल की।
हाईकोर्ट का निर्णय
हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को स्वीकार करते हुए 22 अगस्त 2023 को उनके सेवा समाप्ति के आदेश को खारिज कर दिया। साथ ही यह आदेश दिया गया कि ग्राम रोजगार सहायक को पूर्व की 50 प्रतिशत वेतन के साथ पुनः नियुक्त किया जाए।
आदेश का पालन न होना
इस आदेश को चुनौती देते हुए सरकार ने एक अपील दायर की, लेकिन उस अपील को भी 3 जुलाई 2024 को खारिज कर दिया गया। इसके बावजूद, हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया गया।
कोर्ट में गैरहाजिरी
4 अक्टूबर 2024 को भी दो अधिकारियों को कोर्ट में पेश होने के लिए कहा गया था, लेकिन न तो धार कलेक्टर प्रियंक मिश्रा और न ही श्रिंगार श्रीवास्तव ने कोर्ट में हाजिर होकर आदेश का पालन किया।
इस स्थिति को देखते हुए हाईकोर्ट ने इन दोनों अधिकारियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है।
अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई
यह मामला न केवल न्यायालय के आदेश का उल्लंघन है, बल्कि यह सरकारी अधिकारियों की जिम्मेदारी और जवाबदेही पर भी सवाल खड़ा करता है। जब उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता के अधिकारों की रक्षा के लिए स्पष्ट निर्देश दिए थे, तब उन निर्देशों का पालन नहीं करना गंभीर मामला है।
न्यायपालिका का महत्व
हाईकोर्ट के इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि न्यायपालिका अपने आदेशों के पालन को लेकर कितनी गंभीर है। यह एक महत्वपूर्ण संदेश है कि किसी भी स्तर पर सरकार या उसके अधिकारियों को न्यायालय के आदेशों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए।
पीड़ित का संघर्ष
मिथुन चौहान का संघर्ष यह दर्शाता है कि कैसे एक व्यक्ति को अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़नी पड़ती है। उनकी स्थिति एक सामान्य व्यक्ति की है, जो सरकारी तंत्र के खिलाफ खड़ा हुआ। एक दिन की बीमारी के कारण उन्हें नौकरी से निकाला जाना, और फिर न्याय के लिए इतनी लंबी लड़ाई लड़नी, यह दर्शाता है कि हमारे न्यायालय में न्याय की प्रक्रिया कितनी महत्वपूर्ण है।
भविष्य के लिए दिशा-निर्देश
हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद यह अपेक्षा की जाती है कि संबंधित अधिकारियों पर उचित कार्रवाई की जाएगी। यह न केवल मिथुन चौहान के लिए न्याय का एक कदम होगा, बल्कि अन्य नागरिकों को भी यह संदेश जाएगा कि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ सकते हैं।
प्रशासन की जवाबदेही
इस प्रकार के मामलों में प्रशासन की जवाबदेही सुनिश्चित करना बहुत महत्वपूर्ण है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके अधिकारी कानून और न्याय का पालन करें। नागरिकों को यह विश्वास होना चाहिए कि उनके अधिकारों की रक्षा की जाएगी और अगर उन्हें न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़े, तो उनके मामलों पर गंभीरता से ध्यान दिया जाएगा।