mp news.सीधी में मनरेगा घोटाला: सरपंच ने गांव को बनाया “घोटाला रिसॉर्ट”
जिले के बम्हनी गांव में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) का ऐसा “सुनहरा” चेहरा सामने आया है, जिसे देखकर खुद गांधीजी भी शर्म से लाल हो जाएं। इस योजना को गरीबों को रोजगार देने के लिए बनाया गया था, लेकिन यहां इसे सरपंच और उनके परिजनों ने अपनी जेबें भरने का जरिया बना लिया है।
तालाब नहीं, “घोटाला झील” बनी जमीन
गांव के दिव्यांग घनश्याम तिवारी की कहानी सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उनके खेत पर जबरन तालाब खोद दिया गया, लेकिन यह तालाब पानी के लिए नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार की “झील” बनकर उभरा। सरपंच ने जेसीबी मशीन से खुदाई कर मिट्टी और पत्थर बेच दिए, और घनश्याम को एक पैसा तक नहीं दिया। विरोध करने पर उन्हें गुंडों से धमकाया गया। “तालाब तो बना दिया, लेकिन पानी के बजाय इसमें सरपंच के भ्रष्टाचार की गहराई दिखाई देती है,”।
फर्जी लाभार्थियों की “फर्जी मंडी”
गांव के कमलेश तिवारी के खाते में अचानक योजना का पैसा आया। लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिक पाई, क्योंकि सरपंच ने तुरंत फोन कर पैसा वापस मांग लिया। कमलेश की पत्नी नीलू तिवारी का नाम भी फर्जी तौर पर श्रमिक सूची में जोड़ा गया।
“यहां मजदूरी तो कोई और करता है, लेकिन पैसा सरपंच की “प्यारी मंडली” के खाते में जाता है,”।
ग्रामीणों की जमीन पर कब्जा और धमकी का खेल
इसके साथ ही गांव के किसान दामोदर प्रसाद ने बताया कि उनकी जमीन पर भी तालाब बनाने के बहाने कब्जा कर लिया गया। जब उन्होंने विरोध किया, तो सरपंच ने उन्हें घर की सड़क बंद करने और जान से मारने की धमकी दी।
“जमीन पर खेती तो दूर, अब उस पर खड़ा होना भी गुनाह हो गया है,”।
मनरेगा: रोजगार योजना या “लूट की मशीन”?
राज्य में मनरेगा के आंकड़े लगातार गिर रहे हैं, लेकिन घोटालों की संख्या आसमान छू रही है। श्योपुर में एक मृत महिला को मजदूर दिखाना और खरगोन में दीपिका पादुकोण और दिया मिर्जा को जॉब कार्ड पर जोड़ना, इस योजना के “मनमोहक” कारनामों की गवाही देता है।
जांच की लीपापोती: भ्रष्टाचार का कवच
ग्रामीणों ने जिला कलेक्टर से शिकायत की, लेकिन सरकारी तंत्र “जांच का नाटक” कर रहा है। शिकायतें फाइलों में दब गई हैं, और सरपंच के “रौब” के आगे प्रशासन भी घुटने टेक चुका है।
सरपंच का “सुपरहिट बचाव”
मामले पर सरपंच अक्रिति तिवारी ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उनके चाचा अरविंद तिवारी ने इसे “राजनीतिक साजिश” करार दिया। ग्रामीणों का दावा है कि असली ताकत अरविंद के हाथ में है।
“सरपंच तो महज एक कठपुतली है, असली खेल तो अरविंद तिवारी का है,”।
क्या सरकार सुनेगी ग्रामीणों की चीखें?
मनरेगा, जो कभी ग्रामीण भारत के विकास की उम्मीद थी, अब भ्रष्टाचार का पर्याय बन गई है। सवाल यह है कि क्या राज्य सरकार इस “घोटाला रिसॉर्ट” के जिम्मेदारों पर कार्रवाई करेगी, या यह मामला भी सरकारी फाइलों में दबकर रह जाएगा?
“ग्रामीण बताते हैं कि इस योजना के तहत ग्रामीणों को नहीं, बल्कि नेताओं और अधिकारियों को रोजगार मिल रहा है,”।
बम्हनी का यह मामला सरकार और प्रशासन की आंखें खोलने के लिए काफी है, लेकिन क्या ये आंखें कभी खुलेंगी? या गरीबों की मेहनत का पैसा इसी तरह “घोटाला झील” में डूबता रहेगा?