Manipur: KAAC की पहल, मणिपुर हिंसा के बाद विस्थापितों की वापसी का रास्ता

Manipur: मणिपुर में लंबे समय से कुकी-जो और मैतेई समुदाय के बीच हिंसा जारी है। इस हिंसा में अब तक कई लोगों की जान जा चुकी है और हजारों लोग विस्थापित हो चुके हैं। इसी बीच, असम के कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (Karbi Anglong Autonomous Council – KAAC) ने कहा है कि वह लगभग 1,000 कुकी-जो लोगों की वापसी में मदद करेगा, जिन्होंने पिछले साल मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद सिंगासन हिल्स में शरण ली थी।
कार्बी आंगलोंग परिषद का बयान
KAAC के मुख्य कार्यकारी सदस्य (CEM) तुलीराम रोंघांग ने कहा कि इस मुद्दे पर विभिन्न पक्षकारों के साथ बैठकें आयोजित की जाएंगी ताकि कुकी-जो लोगों की वापसी को सुगम बनाया जा सके। उन्होंने स्पष्ट किया कि शरणार्थियों को जबरदस्ती हटाया नहीं जाएगा, बल्कि उनकी स्वैच्छिक वापसी सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक और राजनीतिक संगठनों के साथ मिलकर काम किया जाएगा।
भूमि अधिकारों को लेकर स्पष्ट नीति
रोंघांग ने भूमि अधिकारों के संदर्भ में स्पष्ट किया कि कार्बी आंगलोंग जिले में भूमि अधिकार केवल उन्हीं लोगों को दिए जाएंगे जो जिले के गठन के समय से यहां निवास कर रहे हैं या लंबे समय से स्थायी निवासी हैं। उन्होंने कहा, “जिले के बाहर से आए व्यक्तियों, विशेष रूप से मणिपुर से आए लोगों, को हमारी भूमि दस्तावेज वितरण पहल के तहत भूमि अधिकार नहीं दिए जाएंगे।” यह बयान उन्होंने मंगलवार को बोकाजन के जपाराजन क्षेत्र में भूमि अधिकार वितरण कार्यक्रम के दौरान दिया।
बातचीत के लिए बैठक 28 नवंबर को
रोंघांग ने जानकारी दी कि 28 नवंबर को एक बैठक बुलाई गई है जिसमें इस मुद्दे पर चर्चा की जाएगी। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह मामला आपसी सहमति से सुलझा लिया जाएगा।
कार्बी आंगलोंग के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य
कार्बी आंगलोंग और पश्चिम कार्बी आंगलोंग जिले भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत स्वायत्त परिषदों द्वारा शासित हैं। यह क्षेत्र कार्बी लोगों का निवास स्थान है, जो पहाड़ी जनजातियों में सबसे बड़ी आबादी रखते हैं। इसके अलावा, यहां कुकी, हमार और थाडो जनजातियों के लोग भी निवास करते हैं।
कार्बी और कुकी समुदायों के बीच पुराना संघर्ष
कार्बी पहाड़ियों में कार्बी और कुकी समुदायों के बीच लंबे समय से जातीय संघर्ष होते आए हैं। 1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत में यह संघर्ष उग्र रूप ले चुका था, जब इन समुदायों के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाले उग्रवादी संगठनों – यूनाइटेड पीपल्स डेमोक्रेटिक सॉलिडैरिटी (UPDS) और कुकी रेवोल्यूशनरी आर्मी (KRA) – के बीच बार-बार झड़पें हुईं। इन झड़पों में 100 से अधिक लोगों की मौत हुई।
हालांकि, 2021 में कार्बी उग्रवादी संगठनों ने सरकार के साथ एक शांति समझौता किया, जिससे इस क्षेत्र में हिंसा पर विराम लगा।
संघर्ष की जड़ें: भूमि, संसाधन और राजनीतिक प्रतिनिधित्व
कार्बी और कुकी समुदायों के बीच संघर्ष की जड़ें भूमि, संसाधनों और राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर विवाद में निहित हैं। यह विवाद समय-समय पर हिंसा का रूप लेता रहा है।
मणिपुर की मौजूदा स्थिति
मणिपुर में कुकी-जो और मैतेई समुदायों के बीच जारी जातीय संघर्ष ने अब तक 250 से अधिक लोगों की जान ले ली है। यह हिंसा मई 2023 में उस समय भड़क उठी, जब मैतेई समुदाय ने जनजातीय दर्जे की मांग की, जिसका कुकी-जो जनजातियों ने विरोध किया। इस संघर्ष के कारण हजारों लोग विस्थापित हो गए हैं।
KAAC की पहल का महत्व
KAAC द्वारा कुकी-जो शरणार्थियों की वापसी की पहल न केवल क्षेत्रीय स्थिरता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह विभिन्न समुदायों के बीच विश्वास बहाली में भी सहायक हो सकती है। हालांकि, इस प्रक्रिया में विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक संगठनों की भागीदारी और सहमति आवश्यक है।
भविष्य की चुनौतियां और उम्मीदें
हालांकि, इस पहल में कई चुनौतियां हैं। जातीय समूहों के बीच पुराने विवाद और संसाधनों पर दावे की स्थिति इस प्रक्रिया को कठिन बना सकती है। इसके अलावा, कार्बी आंगलोंग क्षेत्र में रहने वाले कुकी समुदाय की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
हालांकि, KAAC के प्रयास और विभिन्न पक्षों के साथ समन्वय की पहल से उम्मीद की जा सकती है कि यह मामला शांतिपूर्ण ढंग से सुलझेगा। 28 नवंबर को होने वाली बैठक इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है।
असम के कार्बी आंगलोंग में कुकी समुदाय की वापसी के प्रयास जातीय शांति और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक सकारात्मक कदम हो सकते हैं। KAAC की यह पहल विभिन्न समुदायों के बीच आपसी विश्वास और सहयोग को बढ़ावा दे सकती है। इसके साथ ही, सभी पक्षों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए संवाद और समन्वय की प्रक्रिया को और मजबूत करना आवश्यक होगा।