बसपा प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद और समधी डॉ. आशोक सिद्धार्थ को पार्टी से निकाला, पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण की कार्रवाई
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बहुजन समाज पार्टी (BSP) की प्रमुख मायावती ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण अपने भतीजे आकाश आनंद और समधी डॉ. आशोक सिद्धार्थ को पार्टी से बाहर निकाल दिया है। मायावती ने यह कदम दोनों नेताओं के खिलाफ पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते उठाया है। डॉ. आशोक सिद्धार्थ मायावती के समधी हैं और उन्हें पार्टी से निष्कासित किया गया है। मायावती ने इस फैसले की जानकारी अपने X हैंडल पर दी है और बताया कि डॉ. आशोक सिद्धार्थ को तत्काल प्रभाव से पार्टी से बाहर कर दिया गया है।
मायावती का स्पष्ट बयान: पार्टी के हित में की गई कार्रवाई
मायावती ने अपने बयान में कहा कि डॉ. आशोक सिद्धार्थ, जो पूर्व सांसद और कई दक्षिणी राज्यों के BSP के प्रभारी थे, को पार्टी से बाहर किया गया है। उन्होंने कहा, “डॉ. आशोक सिद्धार्थ और नितिन सिंह, जो कि मेरठ से हैं और हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनाव में आकाश आनंद के साथ तैनात थे, को पार्टी से बाहर किया गया है। इन दोनों नेताओं ने पार्टी के खिलाफ कार्य किया, जिनमें गुटबाजी और पार्टी विरोधी गतिविधियाँ शामिल थीं, इसके बावजूद कई बार चेतावनियाँ दी गई थीं।”
बीएसपी की ओर से ख़ासकर दक्षिणी राज्यों आदि के प्रभारी रहे डा अशोक सिद्धार्थ, पूर्व सांसद व श्री नितिन सिंह, ज़िला मेरठ को, चेतावनी के बावजूद भी गुटबाजी आदि की पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के कारण पार्टी के हित में तत्काल प्रभाव से पार्टी से निष्कासित किया जाता है।
— Mayawati (@Mayawati) February 12, 2025
मायावती ने पहले ही चेतावनी दी थी: पार्टी में टूट की संभावना
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि मायावती ने इन दोनों नेताओं को कार्रवाई से पहले चेतावनियाँ दी थीं। डॉ. आशोक सिद्धार्थ मायावती के भतीजे आकाश आनंद के ससुर हैं और उन्हें पहले कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ दी गई थीं। डॉ. सिद्धार्थ को पार्टी ने कई राज्यों में पार्टी का प्रभारी बनाया था, जिसमें खासतौर पर दक्षिणी राज्यों में उनकी अहम भूमिका थी। हाल ही में, नितिन सिंह को भी पार्टी के कार्यों में सक्रिय भूमिका दी गई थी, विशेष रूप से दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान आकाश आनंद के साथ मिलकर कार्य करने के लिए। लेकिन इन दोनों नेताओं की गतिविधियाँ पार्टी की नीतियों के खिलाफ जा रही थीं, जिसके कारण उन्हें बाहर किया गया।
आशोक सिद्धार्थ की पार्टी में भूमिका और उनका परिवार
डॉ. आशोक सिद्धार्थ का राजनीति में आने से पहले सरकारी नौकरी में महत्वपूर्ण स्थान था। उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में कदम रखा और BSP जॉइन की। मायावती ने उन्हें पहले विधान परिषद (MLC) सदस्य बनाया। इसके बाद, 2016 में, उन्हें राज्यसभा सांसद बनाया गया, और उनका कार्यकाल 2022 में समाप्त हुआ। मायावती और डॉ. आशोक सिद्धार्थ का परिवार हमेशा से करीबी रिश्ते में था। डॉ. सिद्धार्थ की पत्नी भी उत्तर प्रदेश महिला आयोग की अध्यक्ष रह चुकी हैं। इस तरह, मायावती और उनके परिवार के बीच बहुत गहरे संबंध थे, लेकिन पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण उन्हें पार्टी से बाहर निकालने की स्थिति उत्पन्न हुई।
आकाश आनंद की राजनीतिक भविष्यवाणी
मायावती ने आकाश आनंद को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया था, लेकिन अब उनके परिवार के खिलाफ की गई कार्रवाई ने पार्टी के अंदर कई सवाल उठाए हैं। आकाश आनंद, जो मायावती के भतीजे हैं, को पार्टी के युवा चेहरों में से एक माना जाता था और उनके बारे में यह कयास लगाए जा रहे थे कि वह बसपा के भविष्य में प्रमुख भूमिका निभाएंगे। अब, पार्टी से उनके समधी डॉ. आशोक सिद्धार्थ के निष्कासन के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि आकाश आनंद की राजनीतिक यात्रा कैसी होती है।
बसपा के अंदरूनी विवाद और आगामी चुनाव
इस घटना ने बसपा के अंदरूनी विवादों को उजागर किया है। पार्टी के अंदर गुटबाजी और मतभेदों के बावजूद, मायावती ने इस कदम से साफ संदेश दिया है कि पार्टी के हितों के खिलाफ कोई भी कार्य करने वाले नेताओं को बख्शा नहीं जाएगा। पार्टी विरोधी गतिविधियाँ और गुटबाजी हमेशा से बसपा के लिए एक चुनौती रही हैं, लेकिन मायावती का यह कदम यह दर्शाता है कि वह पार्टी के अंदर अनुशासन को बनाए रखने के लिए सख्त कदम उठाने के लिए तैयार हैं।
इसके अलावा, आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के मद्देनजर यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पार्टी में चल रहे इस विवाद का चुनावी रणनीतियों पर क्या असर पड़ता है। खासकर यूपी जैसे राज्य में जहां बसपा की प्रभावशीलता चुनावों में महत्वपूर्ण मानी जाती है, यह घटनाक्रम पार्टी के लिए एक चुनौती हो सकता है।
बसपा की राजनीति में आकाश आनंद और डॉ. आशोक सिद्धार्थ के निष्कासन के बाद पार्टी में चल रहे आंतरिक संघर्षों ने सबका ध्यान खींचा है। मायावती का यह कदम यह स्पष्ट करता है कि वह पार्टी के अनुशासन के प्रति गंभीर हैं और किसी भी कीमत पर पार्टी विरोधी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं करेंगी। हालांकि, यह घटनाक्रम पार्टी में बदलाव और सत्ता संघर्ष को लेकर नई चर्चाओं को जन्म दे सकता है, जिससे बसपा के भविष्य पर सवाल उठ सकते हैं। आने वाले समय में बसपा को अपने अंदरूनी विवादों को सुलझाने की आवश्यकता होगी, ताकि आगामी चुनावों में पार्टी अपनी स्थिति मजबूत कर सके।