लाल आतंक के गढ़ से बस्तर की नई शुरुआत: बस्तर में खत्म हुआ नक्सल खतरा, अब विकास और शांति की बयार बहने लगी

छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले को अब नक्सल प्रभावित जिलों की सूची से हटा दिया गया है। पहले यह लाल आतंक का गढ़ माना जाता था, लेकिन अब यहां माओवादियों का नामोनिशान तक मिट चुका है। केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने बस्तर को लेफ्ट विंग एक्सट्रीमिज्म (LWE) की सूची से निकालकर इसे लेगेसी जिले की श्रेणी में शामिल किया है। बस्तर कलेक्टर हरिश एस ने इस निर्णय की पुष्टि की है।
बस्तर एक जनजातीय क्षेत्र है जो अपनी सांस्कृतिक विविधता, घने जंगलों, खनिज संपदा और ऐतिहासिक विरासत के लिए जाना जाता है। वर्षों तक नक्सलवाद की छाया में रहने वाला यह इलाका अब धीरे-धीरे विकास और शांति की ओर बढ़ रहा है। इस नई पहचान के साथ बस्तर में शांति और समृद्धि के रास्ते खुल गए हैं। बस्तर कलेक्टर हरिश ने बताया कि गृह मंत्रालय के इस निर्णय के बाद बस्तर को LWE के तहत मिलने वाली वित्तीय सहायता भी बंद हो जाएगी।
अब विकास के लिए करोड़ों की सहायता नहीं मिलेगी
बस्तर LWE श्रेणी में आने के कारण यहां नक्सल उन्मूलन और विकास कार्यों के लिए केंद्र और राज्य सरकार से करोड़ों रुपये की वित्तीय सहायता मिलती रही है। यह राशि मार्च 2025 तक जारी रही। अप्रैल 2025 से केंद्र सरकार ने LWE फंड बंद कर दिया था। अब बस्तर के LWE सूची से हटाए जाने के कारण इसे भी यह वित्तीय सहायता नहीं मिलेगी। हालांकि, यह संकेत है कि बस्तर में नक्सलवाद पूरी तरह समाप्त हो चुका है और जिला विकास की नई उड़ान भर रहा है।
नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या में भारी कमी
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2018 में देशभर में 126 जिले नक्सल प्रभावित थे। यह संख्या जुलाई 2021 में घटकर 70 रह गई। और अप्रैल 2024 तक यह केवल 38 जिलों तक आ गई है। साथ ही सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों की संख्या भी 12 से घटकर अब केवल 6 रह गई है। यह कमी सरकार की नक्सल उन्मूलन नीतियों और सुरक्षा बलों की कड़ी कार्रवाई का परिणाम है। बस्तर का LWE सूची से हटना इस दिशा में एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।