
आलोक एम इन्दौरिया
बिहार विधानसभा के बेहद प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव में भाजपा आला कमान ने म प्र के मुख्यमंत्री और अब पिछडा वर्ग के साथ-साथ यादव समाज के एक काद्यावर नेता के रूप में स्थापित हो चुके मप्र के सीएम डा मोहन यादव को जिस तरह स्टार प्रचारक की भूमिका से नवाजा है अब इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि क्या मप्र के मोहन बिहार में आला कमान की अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे ? क्योंकि जिस तरह से डा मोहन यादव को नरेंद्र मोदी अमित शाह और योगी जी के बाद बिहार चुनाव में तबज्जो दी गई है उसके चलते राजनीतिक वीथिकाओं में इस सवाल का जवाब लाजमी है यह अलहदा बात है की चुनावी नतीजे ही इस सवाल का सही जवाब देंगे। मगर जिस तरह से दिल्ली और हरियाणा विधानसभा चुनाव में उनका स्ट्राइक रेट रहा है उसके चलते आला कमान की उनसे अपेक्षाएं बढ़ गई है और यकीनन इस बात को खारिज करना नामुमकिन होगा।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डा मोहन यादव को आला कमान ने बिहार चुनाव में स्टार प्रचारक की भूमिका से नवाजा है और वह जबरदस्त तरीके से मध्य प्रदेश की अपनी टीम के साथ बिहार में काम कर रहे हैं ।दरअसल बिहार के चुनाव में यादव समाज की अहम भूमिका रहती है और यादव समाज के वोटो को मुस्लिम तथा अनुसूचित जाति के वोटो के साथ ध्रुवीकरण करके लालू यादव ने जिस तरह से अपनी विसात बिछाई थी उसके चलते बड़े लंबे समय तक बिहार में लालू यादव की हुकूमत कायम रही । बाद में नीतीश कुमार ने इसमे सेंध लगाई मगर 2020 के आम चुनाव में भी आरजेडी ने 75 विधानसभा सीट जीतकर अपना पहला स्थान सुनिश्चित किया था निश्चित ही जिस राजनीतिक जमीन पर लालू की पार्टी काम कर रही थी वह सत्ता के नजदीक पहुंचने वाली पुख्ता जमीन थी। यानी यादव और मुस्लिम वोटो के समीकरण में अन्य को जोड़कर सरकार बनाने का फार्मूला उनका हिट फॉर्मूला रहा है ।और इसी के कारण इस बार 243 सीटों में से राजद ने 143 उम्मीदवारों की सूची में 51 यादव और 19 मुस्लिम समुदाय से प्रत्याशी उतारे हैं ।इसके अलावा तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री और मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री बनाने की घोषणा करके लगभग 45% वोटों को साधने का काम इंडी गठबंधन ने किया है। बेशक यह गठबंधन तो है मगर तेजस्वी यादव के परिवार का इस पूरे गठबंधन पर दबदबा किसी से छिपा नहीं है। यानी इस गठबंधन की बागडोर एक तरह से तेजस्वी यादव के हाथों में ही है।
यदि बिहार के जातिगत आंकड़े देखें तो कल 243 सीटों में से 100 के लगभग सीटों पर यादव वोटर बेहद निर्णायक भूमिका में है वही मुस्लिम वोटर 90 सीटों पर असर रखता है। बिहार की आबादी का लगभग 14.26% यादव समुदाय का हिस्सा है जो लंबे समय से आरजेडी का हिस्सा थे और आज भी बने हुए हैं ।वहीं लगभग 18 प्रतिशत के आसपास मुस्लिम समुदाय का भी हिस्सा है। भाजपा के पास बिहार में लालू या तेजस्वी के कद का यादव समाज का एक भी ऐसा नेता नहीं है जो आरजेडी को न केवल टक्कर दे सके बल्कि भाजपा की एनडीए की झोली वोटो से भर सके।
भाजपा ने इस बार एक सोची समझी की रणनीति के तहत मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डा मोहन यादव को स्टार प्रचारक बनाकर बिहार के चुनावी अखाड़े में उतारा है। बिहार के विधानसभा चुनाव में डा मोहन यादव का देश के एकमात्र यादव मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य यादव वोट बैंक में सेंध लगाकर इसे विभाजित करना और अपने पक्ष में लाना है। इसके साथ ही यह भी संदेश देना है कि भाजपा सभी वर्गों को न केवल अवसर देती है बल्कि प्रतिनिधित्व भी देती है।डा मोहन यादव के साथ सबसे बड़ा प्लस पॉइंट यह है कि यादव समाज में तो उनकी स्वीकार्यता है ही मगर इसके साथ ही अन्य ओबीसी और एससी वर्ग में भी उन्हें स्वीकारा जाता है। हरियाणा और दिल्ली के विधानसभा चुनाव में उन्होंने जिन सीटों पर प्रचार किया था वहां पिछड़े वर्ग के साथ इन वोटरों में भी भाजपा को वोट देकर जिताया भी था ।हरियाणा में उनके प्रचार वाली अधिकांश सीटें भाजपा ने जीती थी यानी उनका स्ट्राइक रेट बहुत अच्छा माना गया था।
बिहार में भाजपा का एनडीए गठबंधन की चुनावी राजनीति और रणनीति सवर्ण यानि ब्राह्मण, ठाकुर और भूमिहार के साथ गैर यादव ओबीसी वर्ग जिसमें कुशवाहा, कोईरी और कुर्मी के साथ अति पिछड़ा वर्ग पर टिकी है।इस अति पिछड़ा वर्ग के मसीहा नीतीश कुमार है और यह अति पिछड़ा वर्ग 36% के लगभग है। डा मोहन यादव आला कमान की मंशा पर इस युति में यादव समाज को जोड़ने और भाजपा की ओर यादव वोटो को मोड़ने का काम कर रहे हैं। और जिस तरह से उन्हें जन समर्थन मिल रहा है, भारी भीड़ उनकी सभा में आ रही है, उससे तो फिल वक्त यह संकेत भाजपाई खेमे में अच्छे माने जा रहे हैं। जानकारी के अनुसार मोहन यादव को उन 52 विधानसभा सीटों पर दमदारी से उतरा गया है जो यादव बहुल्य हैं और ओबीसी सेक्टर वहां अहम रोल प्ले करता है। बताया जाता है कि यह 52 सीटें किसी भी दल की राजनीति तकदीर को लिखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भी है कि इन सीटों पर आवश्यकता नुसार डा मोहन यादव को एक से चार बार तक प्रचार ,रैली, सभा, रोड शो और नुक्कड़ सभाओं के लिए भेजा जा रहा है ।सकल भाजपा दल बिहार को यह बताना और जताना चाह रहा है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डा मोहन यादव देश के एकमात्र मुख्यमंत्री हैं जो यादव समाज से आते हैं ।और इसी के चलते भाजपा उन्हें यादव बहुल्य सीटों पर भाजपा की ओर से एक बहुत बड़े और कद्दावर चेहरे के रूप में उतारकर यह बताना चाह रही है कि भाजपा में यादव समाज का बहुत अहम और सम्मानजनक स्थान है।
बरहाल बिहार विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डा मोहन यादव पिछड़े वर्ग के साथ यादव समाज के एक बड़े प्रतिष्ठित और कद्दावर भाजपा नेता के रूप में उभर कर सामने आए हैं ।और अपने बेहद सधे,सटीक, लच्छेदार भाषणों तथा वाक्चातुर्य से उन्होंने चुनाव को परिवारवाद बनाम राष्ट्रवाद की लड़ाई की संज्ञा देकर अपने राजनीतिक चार्तुय का परिचय भी दिया है। उनकी सभाओं में उम्ड रही भीड़ निश्चित ही अन्य विपक्षी दलों में एक प्रकार का राजनीतिक डर और भय पैदा कर रही है और यदि ऐसा नहीं होता तो मनेर में सड़क और हेलीपैड खोद कर उनकी सभा को रोकने का प्रयास नहीं किया जाता ।बेशक बे आला कमान की कसौटी पर कितना खरे उतरेंगे यह तो चुनावी नतीजे ही बता पाएंगे लेकिन उनकी जबरदस्त सक्रियता यादव और पिछड़ा बाहुल्य क्षेत्र में एनडीए गठबंधन के लिए संभावनाओं के न केवल नए द्वार खोलने का काम कर रही है बल्कि डा मोहन यादव के राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा में बढ़ते राजनीतिक कद की ओर इशारा कर रही है, कद मे इजाफा कर रही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार,राजनीतिक विश्लेषक और स्तंभकार हैं)





