एनकाउंटर के बाद पोस्टमॉर्टम की वीडियोग्राफी और FSL टीम करेगी अपराध स्थल की जांच
उत्तर प्रदेश में पुलिस मुठभेड़ों के बाद अपराधियों के पोस्टमॉर्टम और अपराध स्थल की जांच के संबंध में नए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। अब पुलिस मुठभेड़ में मारे गए अपराधियों का पोस्टमॉर्टम दो डॉक्टरों की संयुक्त टीम द्वारा किया जाएगा। इसके साथ ही पोस्टमॉर्टम की पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी भी की जाएगी, ताकि बाद में इसे साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। इसके अलावा, फोरेंसिक साइंस लैबोरेटरी (एफएसएल) की टीम अपराध स्थल की तस्वीरें लेगी और घटनास्थल की विस्तृत जांच करेगी। इस जांच में प्राप्त सभी सबूतों को मामले की जांच में शामिल किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट और मानवाधिकार आयोग के निर्देशों का पालन
डीजीपी प्रशांत कुमार ने सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देशों का हवाला देते हुए सभी पुलिस अधिकारियों को नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इन निर्देशों के तहत, यदि किसी अपराधी की पुलिस मुठभेड़ में मौत होती है, तो उसकी जानकारी अपराधी के परिवार को तुरंत दी जानी चाहिए। इसके अलावा, सूचना देने के तरीके को भी उचित रूप से दस्तावेजित किया जाना चाहिए, ताकि कोई भ्रम या अस्पष्टता न रहे।
डीजीपी प्रशांत कुमार ने यह भी कहा कि एफएसएल टीम द्वारा मुठभेड़ स्थल की फोटोग्राफी की जानी चाहिए और इन सबूतों को मामले की जांच में अहम हिस्सा माना जाना चाहिए। इससे मुठभेड़ की पारदर्शिता बढ़ेगी और सभी प्रक्रियाओं का रिकॉर्ड उपलब्ध रहेगा, जो जांच को न्यायपूर्ण और विश्वसनीय बनाएगा।
मुठभेड़ स्थल की जांच और हथियारों का परीक्षण
नए दिशा-निर्देशों में यह भी कहा गया है कि मुठभेड़ के बाद घायल पुलिसकर्मियों और अपराधियों के हथियारों का भी परीक्षण होना चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए कि मुठभेड़ में इस्तेमाल किए गए हथियारों से जुड़े सभी तथ्य स्पष्ट हों, इनकी फोरेंसिक जांच आवश्यक मानी गई है। इसके साथ ही, मुठभेड़ में घायल व्यक्तियों की चिकित्सा रिपोर्ट्स को सुरक्षित रखने के लिए इनकी एक सीडी में रिकॉर्डिंग की जाएगी।
इस प्रक्रिया का उद्देश्य है कि सभी महत्वपूर्ण मेडिकल और फोरेंसिक सबूत संरक्षित रहें और जांच में किसी भी प्रकार की चूक या गलतफहमी की संभावना न हो। इन सबूतों को बाद में कोर्ट में भी प्रस्तुत किया जा सकता है, जिससे मुठभेड़ की वैधता और पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके।
क्राइम ब्रांच को मिलेगी जांच की जिम्मेदारी
डीजीपी द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि मुठभेड़ के मामलों की जांच संबंधित पुलिस स्टेशन द्वारा नहीं की जाएगी। इसके बजाय, इस मामले की जांच का जिम्मा क्राइम ब्रांच या किसी अन्य पुलिस स्टेशन को सौंपा जाएगा। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि जांच निष्पक्ष हो और किसी भी प्रकार का पूर्वाग्रह न रहे।
मुठभेड़ के मामलों की जांच प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता लाने और पुलिस की भूमिका की जांच के लिए यह कदम उठाया गया है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि मुठभेड़ के मामलों की जांच निष्पक्षता और कानूनी ढंग से की जाए, जिससे किसी भी प्रकार के अनुचित लाभ या दोषी ठहराए जाने की संभावना कम हो।
अपराध स्थल पर सबूतों का संरक्षण
एफएसएल टीम के साथ-साथ पुलिस को यह सुनिश्चित करना होगा कि मुठभेड़ स्थल पर मिले सभी साक्ष्य सही ढंग से एकत्र किए जाएं और उनका उचित रिकॉर्ड रखा जाए। अपराध स्थल पर पाए जाने वाले सभी भौतिक साक्ष्य, जैसे खून के धब्बे, गोलियों के अवशेष, और हथियारों के निशान, को विस्तार से जांचा जाएगा। इसके अलावा, अपराध स्थल की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी भी की जाएगी, ताकि किसी भी प्रकार का साक्ष्य छूट न जाए।
नए दिशा-निर्देश क्यों जरूरी हैं?
पुलिस मुठभेड़ के मामलों में अकसर विवाद और सवाल उठते रहे हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि मुठभेड़ के बाद की सभी प्रक्रियाएं पारदर्शी और निष्पक्ष हों। नए दिशा-निर्देशों का उद्देश्य मुठभेड़ों में अधिक जिम्मेदारी और पारदर्शिता लाना है, ताकि पुलिस द्वारा किए गए किसी भी कार्रवाई पर सवाल न उठे और जांच प्रक्रिया सही तरीके से हो सके।
सुप्रीम कोर्ट और मानवाधिकार आयोग ने भी मुठभेड़ों के मामलों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए यह सुझाव दिया था कि मुठभेड़ के बाद की सभी प्रक्रियाओं का दस्तावेजीकरण किया जाए, ताकि जांच के दौरान सभी तथ्यों का उचित विश्लेषण किया जा सके।
उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा मुठभेड़ों के बाद की प्रक्रियाओं में नए दिशा-निर्देश जारी करने का मुख्य उद्देश्य यह है कि जांच और पोस्टमॉर्टम की प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष हो। पोस्टमॉर्टम की वीडियोग्राफी, एफएसएल टीम की फोटोग्राफी, और अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्यों का संरक्षित करना मुठभेड़ की वैधता और न्यायपूर्ण जांच के लिए महत्वपूर्ण कदम हैं।