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विटामिन डी की अधिकता का चौंकाने वाला सच: कब बन जाता है ज़हर और कैसे देता है शरीर संकेत

विटामिन डी हमारे शरीर के लिए एक बेहद जरूरी पोषक तत्व है। यह न केवल हड्डियों को मजबूत रखने में मदद करता है बल्कि हार्मोन, कैल्शियम संतुलन, मांसपेशियों, इम्यून सिस्टम और दिमाग की गतिविधियों में भी अहम भूमिका निभाता है। अक्सर लोग सोचते हैं कि जितना ज्यादा विटामिन डी लेंगे उतना अच्छा होगा लेकिन सच्चाई यह है कि इसकी अधिकता शरीर के लिए हानिकारक हो सकती है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं तक सभी को इसकी तय मात्रा में ही ज़रूरत होती है। विशेषज्ञों के मुताबिक एक साल या उससे अधिक उम्र के बच्चों, वयस्कों और गर्भवती या दूध पिलाने वाली महिलाओं को रोजाना 10 माइक्रोग्राम विटामिन डी लेना चाहिए। वहीं एक साल से छोटे बच्चों के लिए 8.5 से 10 माइक्रोग्राम विटामिन डी की जरूरत होती है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कोई व्यक्ति लगातार कुछ महीनों तक रोजाना 60 हजार IU (इंटरनेशनल यूनिट) विटामिन डी लेता है तो यह शरीर में टॉक्सिसिटी पैदा कर सकता है। इसे विटामिन डी टॉक्सिसिटी या हाइपरविटामिनोसिस कहा जाता है। इसका मतलब है कि शरीर में विटामिन डी का स्तर इतना ज्यादा हो जाता है कि वह नुकसान करने लगता है। यह सिर्फ सप्लीमेंट के ओवरडोज से होता है क्योंकि हमारे खानपान या धूप से मिलने वाले विटामिन डी से ऐसा खतरा नहीं होता। इसलिए किसी भी सप्लीमेंट को लेने से पहले डॉक्टर की सलाह लेना जरूरी है।

विटामिन डी की अधिकता का चौंकाने वाला सच: कब बन जाता है ज़हर और कैसे देता है शरीर संकेत

शरीर कैसे देता है संकेत जब विटामिन डी हो ज्यादा

अगर शरीर में विटामिन डी की मात्रा बहुत ज्यादा हो जाए तो कुछ खास संकेत मिलने लगते हैं। पहला है भूख कम लगना यानी खाने की इच्छा बिल्कुल खत्म हो जाती है। ज्यादा विटामिन डी के कारण खून में कैल्शियम जमा हो जाता है जिसे हाइपरकैल्सीमिया कहते हैं और इससे मतली, उल्टी और कमजोरी जैसे लक्षण दिखते हैं। दूसरा बड़ा संकेत है पेट में कब्ज यानी पाचन तंत्र पर असर पड़ता है और शरीर में कैल्शियम कार्बोनेट बढ़ने से आंतों की गति धीमी हो जाती है। तीसरा संकेत है थकान और सुस्ती महसूस होना जो रोजमर्रा की गतिविधियों को प्रभावित करता है। चौथा खतरा है कैंसर और दिल की बीमारियों का बढ़ता जोखिम क्योंकि विशेषज्ञों का मानना है कि विटामिन डी की अधिकता कैंसर और हड्डियों में फ्रैक्चर के जोखिम को बढ़ा सकती है। पांचवां संकेत है बार-बार पेशाब आना जो डायबिटीज या किडनी की बीमारी में भी देखा जाता है।

कैसे करें खुद को सुरक्षित और कहां से पाएं प्राकृतिक विटामिन डी

स्वास्थ्य विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि प्राकृतिक स्रोतों से मिलने वाला विटामिन डी सबसे सुरक्षित और असरदार होता है। फैटी फिश यानी सैल्मन, टूना, सार्डीन, अंडे की जर्दी, कॉड लिवर ऑयल और सुबह की धूप विटामिन डी के बेहतरीन स्रोत माने जाते हैं। अगर आप धूप में रोजाना 15-20 मिनट बिताते हैं तो शरीर को अच्छी मात्रा में विटामिन डी मिल सकता है। सप्लीमेंट तभी लेने चाहिए जब डॉक्टर इसकी सलाह दें क्योंकि बिना जरूरत के सप्लीमेंट लेने से फायदा नहीं बल्कि नुकसान हो सकता है। याद रखें कि शरीर में हर चीज की एक सीमित मात्रा जरूरी होती है और अधिकता हमेशा खतरनाक बन सकती है।

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