राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020: वर्तमान परिदृश्य एवं चुनौतियां

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को केंद्र सरकार ने देश की बदलती आवश्यकताओं और वैश्विक मानकों को ध्यान में रखते हुए 29 जुलाई, 2020 को लागू किया। यह नीति भारतीय परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों को सहेजते हुए ऐसे नागरिकों का निर्माण करना चाहती है जो तर्कसंगत, करुणाशील, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से युक्त और नैतिक मूल्यों से प्रेरित हों। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन के पाँच वर्ष पूर्ण हुए हैं, जो भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक युगांतरकारी परिवर्तन का प्रतीक है। इस नीति का उद्देश्य दशकों पुरानी औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली को परिवर्तित कर वर्तमान की आवश्यकताओं के अनुरूप एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था स्थापित करने हेतु जो व्यावहारिक, कौशल-आधारित, समावेशी और समग्र विकास पर केंद्रित हो। वर्ष 2040 तक सभी वर्गों के विद्यार्थियों को समान रूप से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो, लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
अपने पाँच वर्षों की यात्रा में इस नीति ने पाठ्यक्रम सुधार, डिजिटल एकीकरण और शिक्षक प्रशिक्षण जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है। नीति में शामिल सुधार चरणबद्ध और समग्र दृष्टिकोण पर आधारित हैं, जहाँ एक पहल दूसरे की नींव बनती है। इन पाँच वर्षों में नीति के विभिन्न आयामों—जैसे स्कूली शिक्षा में लचीलापन, उच्च शिक्षा में बहुविषयकता, और डिजिटल लर्निंग को लेकर—अहम प्रयास हुए हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का सबसे महत्वपूर्ण सुधार स्कूली शिक्षा की संरचना में किया गया परिवर्तन है, जिसमें पारंपरिक 10+2 प्रणाली की जगह अब 5+3+3+4 संरचना लागू की गई है। यह नई प्रणाली बच्चों के 3 वर्ष की आयु से संज्ञानात्मक विकास पर केंद्रित है। इसके अंतर्गत एनसीईआरटी ने ‘जादुई पिटारा’, ‘बाल वाटिका’ और ‘विद्याप्रवेश’ जैसी पहलें शुरू की हैं, जो खेल आधारित और अनुभवात्मक शिक्षा को बढ़ावा देती हैं।
पाठ्यक्रम के बोझ को कम करते हुए कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डिजाइन थिंकिंग और डेटा साइंस जैसे भविष्योपयोगी विषय शामिल किए गए हैं। मूल्यांकन प्रणाली में सुधार करते हुए 2026 से सीबीएसई कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षाएँ वर्ष में दो बार आयोजित होंगी। कौशल विकास को मुख्यधारा में लाते हुए, व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने वाले स्कूलों की संख्या 2014-15 में 1,850 से बढ़कर 2024-25 में 29,342 हो गई है।
उच्च शिक्षा में लचीलापन और गुणवत्ता पर बल देते हुए ‘राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा योग्यता फ्रेमवर्क’ और ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट’ के साथ ‘मल्टीपल एंट्री-एग्जिट’ प्रणाली लागू की गई है। स्वयं पोर्टल से ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा मिला है, जिसमें 40 प्रतिशत क्रेडिट ट्रांसफर की सुविधा है। पिछले दशक में 7 नए IIT, 8 IIM, 13 AIIMS और 354 एकलव्य मॉडल स्कूल स्थापित हुए हैं। MBBS सीटें 2014 में 54,348 से बढ़कर 2025 में 1,18,190 हो चुकी हैं। डिजिटल शिक्षा को सशक्त बनाने के लिए ‘दीक्षा’, ‘स्वयं प्रभा’ और ‘पीएम ई-विद्या’ जैसे प्लेटफॉर्म पर 126 भारतीय और 7 विदेशी भाषाओं में सामग्री उपलब्ध है। ‘निष्ठा 3.0’ के तहत 26 लाख से अधिक शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया है। क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2026 में भारत के 54 संस्थानों को स्थान मिला है। नवाचार, स्टार्टअप और भारतीय ज्ञान परंपरा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है। अनुसंधान को बढ़ावा देने हेतु 2023 में अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना हुई तथा रुसा योजना का विस्तार कर प्रधानमंत्री उच्चतर शिक्षा अभियान लागू की गई, जिससे उच्च शिक्षा में समावेशिता और गुणवत्ता को बढ़ावा मिला है। इस नीति से शिक्षा अधिक समावेशी, तकनीकी-नवाचार केंद्रित और भारतीय ज्ञान प्रणाली से जुड़ी शिक्षा को प्रेरित किया जा रहा है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन के विश्लेषण से परिलक्षित होता है, जहाँ कई लक्ष्य प्राप्त कर लिए गए हैं, जबकि कुछ महत्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त किया जाना शेष है । नीति की लगभग 40 प्रतिशत पहलें पूरी हो चुकी हैं। इनमें पीएम श्री स्कीम का क्रियान्वयन, ‘निपुण भारत’ मिशन के तहत मूलभूत साक्षरता, और ‘विद्या-प्रवेश’ स्कूल तैयारी कार्यक्रम प्रमुख हैं। दीक्षा जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म और ‘परख’ जैसे राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र की स्थापना महत्वपूर्ण सफलताएँ हैं। साथ ही, 4-वर्षीय इंटीग्रेटेड बी.एड. कोर्स भी शुरू हो चुका है। लगभग 35 प्रतिशत लक्ष्य ‘इन प्रोग्रेस’ हैं। इनमें ‘अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट’ का विस्तार, कक्षा 6 से वोकेशनल शिक्षा की शुरुआत, और ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना शामिल है। हालाँकि, लगभग 25 प्रतिशत लक्ष्य, जो बड़े और संरचनात्मक हैं, उनकी प्रगति अपेक्षाकृत धीमी है। शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च करने का लक्ष्य अभी भी प्रतीक्षारत है। ‘थ्री-लैंग्वेज फॉर्मूला’ का सार्वभौमिक क्रियान्वयन और विश्वविद्यालयों को पूरी तरह ‘मल्टी-डिसिप्लिनरी’ बनाने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की ठोस नींव रखी है, किंतु इसके क्रियान्वयन में वित्तीय, प्रणालीगत और संरचनात्मक चुनौतियाँ विद्यमान हैं। राज्यों में असमान क्रियान्वयन, ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल डिवाइड, शिक्षकों की कमी और व्यावसायिक शिक्षा का सीमित प्रभाव प्रमुख बाधाएँ हैं। इन चुनौतियों से निपटने हेतु विकेंद्रीकृत क्षमता निर्माण, सार्वजनिक-निजी भागीदारी और समावेशी शिक्षा व्यवस्था आवश्यक है। मध्य प्रदेश ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन में अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय कार्य किया है। केंद्र व राज्य सरकारों के समन्वित प्रयासों से ही यह संभव हो सकेगा। शिक्षा समवर्ती विषय होने के कारण संयुक्त निगरानी व समयबद्ध संसाधन जुटाना आवश्यक है। शिक्षा राष्ट्र के समग्र विकास का आधार है और आदर्श शिक्षकों के माध्यम से ही भारत पुनः विश्वगुरु की भूमिका निभा सकता है।
लेखक – प्रोफेसर रवीन्द्र नाथ तिवारी