MP News: दो रुपये वार्षिक आय वाले परिवार के घर खुशियों की बहार
MP News: मध्य प्रदेश के सागर जिले के गांव घोघरा में बिखरी एक सच्चाई ने सभी को हतप्रभ कर दिया। यहाँ एक ऐसा परिवार है, जिसका वार्षिक आय मात्र दो रुपये है, और इसे दुनिया के सबसे गरीब परिवार के रूप में जाना जाता है। लेकिन हाल ही में, इस परिवार के लिए एक बड़ी खुशखबरी आई है, जिससे उनकी जिंदगी में बदलाव आ सकता है। आइए, जानते हैं इस परिवार की पूरी कहानी।
परिवार की पृष्ठभूमि
इस गरीब परिवार का नाम बलराम चाधर और उनके पिता तेज चाधर है। वे Banda तहसील के घोघरा गांव में रहते हैं। बलराम ने जनवरी 2024 में अपनी आय प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया था। उनका दावा था कि उनकी वार्षिक आय 40,000 रुपये है, लेकिन जब उन्हें आय प्रमाण पत्र मिला, तो उसमें उनकी आय केवल दो रुपये दर्शाई गई थी। यह देखकर न केवल बलराम, बल्कि पूरे गांव के लोग चौंक गए।
सरकारी सुविधाओं से वंचितता
बलराम ने जब अपनी आय प्रमाण पत्र के साथ सरकारी सुविधाओं का लाभ लेने की कोशिश की, तो उन्हें हर बार निराशा का सामना करना पड़ा। जहां भी उन्होंने अपने प्रमाण पत्र को पेश किया, अधिकारियों ने इसे फर्जी बताकर वापस लौटा दिया। बलराम का कहना है कि वह सभी आवश्यक दस्तावेज लेकर गए, लेकिन अधिकारियों ने उन्हें यह कहकर भगा दिया कि कैसे कोई व्यक्ति सिर्फ दो रुपये की वार्षिक आय का दावा कर सकता है।
मीडिया की पहल
जब बलराम की इस दुखद कहानी मीडिया में आई, तो प्रशासन को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने यह स्वीकार किया कि यह मामला उनके सिस्टम में एक बड़ी चूक थी। बलराम का मामला जनवरी से सितंबर तक बेकार चला गया था, और यह केवल मीडिया के माध्यम से ही सुर्खियों में आया।
आय प्रमाण पत्र में सुधार
मीडिया के दबाव के बाद, प्रशासन ने बलराम के आय प्रमाण पत्र को सही किया। अब उनकी वार्षिक आय को 40,000 रुपये मान लिया गया है। यह बदलाव न केवल बलराम के लिए बल्कि उनके पूरे परिवार के लिए एक नई उम्मीद लेकर आया है। अब वे सरकारी योजनाओं और सुविधाओं का लाभ उठा सकेंगे।
प्रशासनिक बदलाव
इस मामले में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि उस समय के तहसीलदार, ज्ञांचंद राय, जो बलराम के आय प्रमाण पत्र को जारी करने के लिए जिम्मेदार थे, को पहले ही स्थानांतरित किया जा चुका था। इस संदर्भ में, अधिकारियों ने इसे एक टाइपिंग की गलती बताया और इसका सुधार किया। बलराम ने कहा कि वह खुश हैं कि उनका प्रमाण पत्र अब सही किया गया है, लेकिन इसके लिए उन्हें छह महीने का इंतजार करना पड़ा।
सामाजिक प्रभाव
इस घटना ने न केवल बलराम के जीवन को प्रभावित किया है, बल्कि यह दर्शाता है कि प्रशासनिक लापरवाहियों का असर गरीबों पर कितना पड़ता है। बलराम जैसे व्यक्ति, जो समाज में सबसे कमजोर स्थिति में हैं, उनके साथ इस प्रकार का बर्ताव किसी भी सूरत में उचित नहीं है। यह घटना यह भी दर्शाती है कि यदि मीडिया और समाज की आवाज नहीं उठती, तो प्रशासन शायद इस मुद्दे पर ध्यान नहीं देता।