मध्य प्रदेशरीवा

रीवा में खाकी की खनक या रेत की खनक? अतरैला थाना प्रभारी पर रेत माफिया संग गठजोड़ का सनसनीखेज आरोप, रातों-रात लुट रहा नदी का खजाना

रीवा। मध्यप्रदेश में अवैध रेत खनन पर सख्ती के तमाम दावों के बीच रीवा जिले से एक बार फिर कानून व्यवस्था को शर्मसार करने वाला मामला सामने आया है। अतरैला थाना क्षेत्र में पदस्थ थाना प्रभारी पर गंभीर आरोप लग रहे हैं कि वे रेत माफिया के साथ पार्टनरशिप में काम कर रहे हैं और अवैध खनन व परिवहन से मोटी रकम कमा रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि थाना प्रभारी अब कानून के रखवाले नहीं बल्कि रेत माफिया के ठेकेदार बन चुके हैं।

सूत्रों के मुताबिक अतरैला क्षेत्र की नदी से रोजाना रात के अंधेरे में बड़े पैमाने पर अवैध रेत खनन किया जा रहा है। नदी की छाती को छलनी कर दिया गया है। हालात यह हैं कि प्रतिदिन करीब 1000 ट्रक और ट्रैक्टर रेत भरकर निकल रहे हैं। यह पूरा अवैध कारोबार रातभर चलता है लेकिन न तो पुलिस की गश्त नजर आती है और न ही कोई कार्रवाई होती है। इससे ग्रामीणों में आक्रोश व्याप्त है।

ग्रामीणों और क्षेत्रीय सूत्रों का आरोप है कि इस अवैध रेत परिवहन के बदले माफिया द्वारा हर वाहन से तय हिस्सा वसूला जाता है जो सीधे थाना स्तर तक पहुंचता है। यही वजह है कि ट्रक ट्रैक्टर और जेसीबी मशीनें खुलेआम फर्राटा भरती नजर आती हैं। बताया जा रहा है कि थाना प्रभारी को ट्रक ट्रैक्टर और जेसीबी मशीनों का विशेष शौक है और इसी शौक को पूरा करने के लिए अवैध खनन से अर्जित काले धन का सहारा लिया जा रहा है।

रीवा जिले में इन दिनों सबसे कम समय में ज्यादा पैसा कमाने की होड़ मची हुई है। इस दौड़ में कुछ नए-नवेले सब-इंस्पेक्टर भी सवालों के घेरे में आ गए हैं। आरोप है कि अनुभव की कमी और लालच के चलते वे कानून को ताक पर रखकर माफियाओं के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। इससे पुलिस की छवि को भारी नुकसान पहुंच रहा है और आम जनता का भरोसा डगमगा रहा है।

अवैध रेत खनन का असर सिर्फ कानून व्यवस्था तक सीमित नहीं है। इससे पर्यावरण को भी अपूरणीय क्षति पहुंच रही है। नदी का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है और आने वाले समय में आसपास के गांवों में जल संकट और भू-कटाव का खतरा बढ़ सकता है। बावजूद इसके जिम्मेदार अधिकारी कथित रूप से चुप्पी साधे हुए हैं।

स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति अवैध खनन के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश करता है, तो उसे डराया-धमकाया जाता है। कुछ लोगों का दावा है कि शिकायतें करने के बावजूद कोई सुनवाई नहीं होती क्योंकि खाकी ही माफियाओं की ढाल बनी हुई है।

अब सवाल यह उठता है कि क्या जिला प्रशासन और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी इन आरोपों को गंभीरता से लेंगे? क्या अतरैला थाना प्रभारी और कथित रूप से शामिल अन्य पुलिसकर्मियों की निष्पक्ष जांच होगी? या फिर रेत माफिया और उनके संरक्षक यूं ही सरकारी नियमों और पर्यावरण दोनों को रौंदते रहेंगे?

जनता की निगाहें अब प्रशासन पर टिकी हैं। यदि समय रहते सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो यह साफ हो जाएगा कि रीवा में रेत माफिया का राज कानून से ऊपर है और खाकी की साख दांव पर लगी हुई है।

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