Guru Gobind Singh Jayanti 2025: सिख धर्म के महान योद्धा और आध्यात्मिक गुरु को श्रद्धांजलि

Guru Gobind Singh Jayanti 2025: आज, 6 जनवरी 2025, को पूरे देश में गुरु गोबिंद सिंह जयंती बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है। यह दिन सिख समुदाय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और विशेष है। गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना, बिहार में हुआ था। वे सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु थे। उनके पिता गुरु तेग बहादुर जी और माता गुजरी जी ने उन्हें धर्म और साहस के संस्कार दिए। गुरु गोबिंद सिंह जयंती को प्रकाश पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।
गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन और शिक्षाएं
गुरु गोबिंद सिंह जी न केवल एक आध्यात्मिक गुरु थे, बल्कि एक महान योद्धा, दार्शनिक और कवि भी थे। उनका पूरा जीवन मानवता की सेवा, धर्म की रक्षा और अन्याय के खिलाफ संघर्ष में समर्पित रहा।
खालसा पंथ की स्थापना
गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की। इसका उद्देश्य सिखों को धर्म और मानवता की सेवा के लिए संगठित करना था। उन्होंने खालसा पंथ के सदस्यों को “पंज ककार” धारण करने का आदेश दिया, जो इस प्रकार हैं:
- केश (बाल) – यह सिख धर्म में आध्यात्मिकता और पवित्रता का प्रतीक है।
- कंघा (कंघी) – स्वच्छता और अनुशासन का प्रतीक।
- कड़ा (लोहे का कंगन) – ईश्वर के प्रति विश्वास और कर्म में एकता का प्रतीक।
- कच्छा (विशेष वस्त्र) – नैतिकता और संयम का प्रतीक।
- किरपान (तलवार) – अन्याय के खिलाफ संघर्ष और धर्म की रक्षा का प्रतीक।
गुरु गोबिंद सिंह जी की शिक्षाएं
वचन निभाने का महत्व
गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखाया कि जीवन में यदि आप किसी से वादा करते हैं, तो उसे निभाने का प्रयास करें। सत्यता और ईमानदारी को जीवन का आधार बनाएं।
जरूरतमंदों की सेवा
गुरु जी ने कहा, “पर्देशी, लोरवान, दुखी, और विकलांग मनुष्यों की सेवा करनी चाहिए।” उनका संदेश था कि किसी भी जरूरतमंद की मदद करने से पीछे नहीं हटना चाहिए।
अहंकार का त्याग
गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा कि कभी भी धन, जाति, यौवन या पारिवारिक प्रतिष्ठा पर घमंड नहीं करना चाहिए। जीवन में सादगी और विनम्रता को बनाए रखना चाहिए।
गुरबाणी का अध्ययन
गुरु जी ने गुरबाणी को कंठस्थ करने पर जोर दिया। उनके अनुसार, यह आत्मा को शुद्ध और जीवन को दिशा देने का सबसे बड़ा साधन है।
प्रकाश पर्व का महत्व
गुरु गोबिंद सिंह जयंती को “प्रकाश पर्व” कहा जाता है। यह पर्व आत्मा की शुद्धता और ज्ञान के प्रकाश का प्रतीक है। यह दिन सिख समुदाय के लिए उनके महान गुरु के जीवन और शिक्षाओं का स्मरण करने का अवसर है।
धार्मिक और सामाजिक योगदान
गुरु गोबिंद सिंह जी ने न केवल सिख धर्म को एक नई दिशा दी, बल्कि सामाजिक सुधारों में भी योगदान दिया। उन्होंने सिख धर्म में लंगर (सामूहिक भोजन) की परंपरा को बढ़ावा दिया और सामाजिक समानता का संदेश दिया।
बलिदान और साहस
गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने चारों पुत्रों को धर्म और सिख समुदाय की रक्षा के लिए बलिदान कर दिया। उनके दो पुत्रों, साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह, को जिंदा दीवार में चिनवा दिया गया, जबकि बड़े पुत्रों, साहिबजादा अजीत सिंह और साहिबजादा जुझार सिंह, ने युद्ध में वीरगति पाई।
गुरु गोबिंद सिंह जी का संदेश
गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिख समुदाय को यह सिखाया कि धर्म और मानवता के लिए संघर्ष करना जीवन का महत्वपूर्ण उद्देश्य है। उन्होंने कहा:
“चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊं, तबे गुरु गोबिंद सिंह नाम कहाऊं।”
इसका अर्थ है कि साहस और संकल्प के साथ सबसे कठिन परिस्थितियों का सामना करना चाहिए।
गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन और उनकी शिक्षाएं न केवल सिख समुदाय के लिए, बल्कि पूरे मानव समाज के लिए प्रेरणादायक हैं। उन्होंने हमें यह सिखाया कि अन्याय के खिलाफ लड़ना, जरूरतमंदों की मदद करना और विनम्रता से जीवन जीना ही सच्चा धर्म है।
गुरु गोबिंद सिंह जयंती का यह अवसर हमें उनके आदर्शों को अपनाने और उनके दिखाए मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। आइए, इस पावन दिन पर उनके महान योगदानों को स्मरण करें और समाज में शांति, समानता और भाईचारे का संदेश फैलाएं।