अन्नदाता का आक्रोश! मक्का के ‘कौड़ियों के दाम’ पर भड़के किसान, आगरा-मुंबई हाईवे 3 घंटे जाम

शिवपुरी। कृषि को खुशहाल बनाने के नेताओं के तमाम दावे इस वक्त शिवपुरी की सड़कों पर दम तोड़ते नजर आ रहे हैं। मंगलवार को जिले के गुस्साए किसानों ने देश के सबसे व्यस्ततम मार्गों में से एक, आगरा-मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग (AB Road) पर ट्रैक्टर आड़े-तिरछे लगाकर भीषण जाम लगा दिया। यह विरोध मक्का की फसल के लिए व्यापारियों द्वारा लगाए गए ‘कौड़ियों के दाम’ के खिलाफ था, जिससे किसानों की लागत तक नहीं निकल पा रही थी। करीब तीन घंटे तक चले इस चक्काजाम ने हाईवे पर वाहनों की कई किलोमीटर लंबी कतारें लगा दीं, जिससे प्रशासनिक अमले में हड़कंप मच गया।
लागत भी नहीं निकाल पा रहा मक्का का भाव
दरअसल, अतिवृष्टि के कारण इस बार किसानों की सोयाबीन समेत दलहनी फसलें बर्बाद हो गईं थीं। ऐसे में मक्का का अच्छा उत्पादन ही अन्नदाता के लिए एकमात्र सहारा बचा था। लेकिन, जब किसान अपनी मेहनत का फल बेचने लुकवासा मंडी पहुंचे, तो व्यापारियों ने उन्हें तगड़ा झटका दिया। मक्का के दाम 900 से 1000 रुपए प्रति क्विंटल लगाए गए। इतने कम दाम सुनकर किसान का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उनका आरोप था कि यह भाव उनकी लागत को भी पूरा नहीं कर रहा है, जिससे उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
गुस्से में भरे किसान तुरंत अपनी मांग को लेकर एबी रोड पर उतर आए और विरोध स्वरूप हाईवे जाम कर दिया। इस अति-व्यस्त मार्ग पर जाम लगने से यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा।
प्रशासन की समझाइश पर खुला जाम
सूचना मिलते ही प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंचे। उन्हें आक्रोशित किसानों को समझाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। लगभग तीन घंटे की समझाइश और आश्वासन के बाद ही किसान शांत हुए और जाम खोला जा सका।
नेताओं के ‘खोखले दावे’ और ज़मीनी सच्चाई
यह विरोध प्रदर्शन सिर्फ एक दिन की घटना नहीं है। एक दिन पहले, सोमवार को भी भौंती में सिरसौद-पिछोर रोड पर मूंगफली में ठगी के विरोध में किसानों ने सुबह से शाम तक चक्काजाम किया था।
ये दोनों मामले इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि किसानों के साथ मंडियों में सरेआम धोखाधड़ी हो रही है, उन्हें लूटा जा रहा है, और उनकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही है। केंद्र से लेकर प्रदेश सरकार तक, नेता लगातार किसानों को हितेषी बताकर तमाम योजनाओं का बखान कर रहे हैं, लेकिन ज़मीन पर सच्चाई यह है कि व्यवस्था से त्रस्त होकर किसान अब सड़कों पर उतरने और चक्काजाम करने को मजबूर है।
अन्नदाता की यह मजबूरी नेताओं के बड़े-बड़े दावों को ‘खोखला’ साबित करती है और व्यवस्था पर कई गंभीर सवाल खड़े करती है।





