आदिवासी परिवारों पर फर्जी वन अपराध दर्ज करने के आरोप, अतरैला रेंज की कार्यप्रणाली पर उठे गंभीर सवाल

डभौरा/रीवा। वन परिक्षेत्र अतरैला अंतर्गत ग्राम कल्याणपुर हरिजन टोला में कुछ आदिवासी परिवारों पर वन प्राणी (सूअर) के अवैध शिकार का कथित प्रकरण दर्ज किए जाने को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। ग्रामीणों, स्थानीय नेताओं और सामाजिक संगठनों ने आरोप लगाया है कि यह पूरा मामला वास्तविक अपराधियों को बचाने और निर्दोष आदिवासी परिवारों को राजनीतिक कारणों से फँसाने की एक सुनियोजित कार्रवाई हो सकती है। मामले ने अब राजनीतिक रंग ले लिया है और इसे लेकर ग्रामीणों में भारी आक्रोश व्याप्त है।
ग्रामीणों के गंभीर आरोप – “साजिश के तहत फँसाया गया”
ग्राम कल्याणपुर के निवासियों का कहना है कि क्षेत्र के ही एक कथित दबंग और राजनीति में सक्रिय व्यक्ति द्वारा लंबे समय से वन प्राणियों के अवैध शिकार और मांस बिक्री का काम संचालित किया जाता है। ग्रामीणों का दावा है कि वास्तविक गतिविधि के पीछे कुछ प्रभावशाली लोग हैं, लेकिन कार्रवाई उन पर न होकर राजनीतिक विरोधियों और गरीब आदिवासी परिवारों पर की जा रही है। ये आरोप अभी आरोप मात्र हैं, जिनकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, परंतु ग्रामीणों के बयान लगातार सामने आ रहे हैं।

18 नवंबर की घटना – “अचानक घर घेरकर तलाशी”
ग्रामीणों के अनुसार 18 नवंबर 2025 को दोपहर लगभग 3 से 4 बजे के बीच एक आदिवासी युवक को वनकर्मियों द्वारा पकड़कर ले जाया गया। इसके बाद शाम करीब 8 बजे रिटायर्ड शिक्षक लालता कोल के घर दो गाड़ियों में पहुँची वन विभाग की टीम ने कथित रूप से घर में जबरन प्रवेश किया। ग्रामीणों का आरोप है कि तलाशी के दौरान महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार हुआ और उन्हें घसीटा भी गया। आरोप यह भी है कि घर से कोई अवैध मांस या वन्यजीव संबंधित सामग्री बरामद नहीं हुई, फिर भी लालता कोल को आरोपी बनाए जाने की बात सामने आ रही है।
लालता कोल और उनके परिवार का कहना है कि वे अपने ऊपर लगाए गए आरोपों से पूरी तरह निर्दोष हैं और उन्हें राजनीतिक द्वेष के कारण फंसाया जा रहा है। गाँव के कई लोगों ने भी दावा किया कि घटना के दौरान वनकर्मियों का व्यवहार अत्यधिक कठोर और असंवैधानिक था।
ग्रामीणों का आरोप – “राजनीतिक दबाव में कार्रवाई”
स्थानीय नेताओं ने कहा कि जो लोग वास्तव में वन प्राणियों के अवैध व्यापार में शामिल हैं, उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही। आरोप है कि राजनीतिक संरक्षण के कारण वास्तविक दोषियों पर हाथ डालने से बचा जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि सभी तथ्यों की निष्पक्ष जाँच की जाए तो पूरे मामले की सच्चाई सामने आ जाएगी।
जन आंदोलन की चेतावनी
ग्रामीणों ने साफ कहा है कि यदि उनके ऊपर लगाए गए मामलों की पुनः जाँच नहीं की गई और दोषी वनकर्मियों पर उचित कार्रवाई नहीं हुई, तो वे बड़े स्तर पर जन आंदोलन करने को मजबूर होंगे। उनका कहना है कि अब वे अन्याय सहन नहीं करेंगे और न्याय मिलने तक संघर्ष जारी रहेगा।
वन विभाग की प्रतिक्रिया – बयान देने से इंकार
20 नवंबर 2025 को जब मीडिया ने वन परिक्षेत्राधिकारी अतरैला से संपर्क किया, तो उन्होंने कैमरे पर बयान देने से इंकार कर दिया। उनका कहना था कि इस मामले में आधिकारिक प्रतिक्रिया एसडीओ वन प्रदान करेंगे। हालाँकि एसडीओ का बयान समाचार लिखे जाने तक प्राप्त नहीं हुआ।
निष्पक्ष जाँच की मांग तेज
मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए स्थानीय सामाजिक संगठनों, आदिवासी समुदाय और ग्रामीणों ने उच्च स्तरीय निष्पक्ष जाँच की मांग की है। उनका कहना है कि यदि आरोप गलत साबित होते हैं तो वनकर्मियों पर कड़ी विभागीय कार्रवाई होनी चाहिए, और यदि ग्रामीणों के आरोप सही पाए जाते हैं तो वास्तविक दोषियों को बेनकाब किया जाना आवश्यक है।





