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बदनाम होती पत्रकारिता का ज़िम्मेदार कौन?

Dainikmediaauditor – पत्रकार, एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही आंखों के सामने एक ऐसे शख्स की छवि बनती है मानो कोई कलम का पुजारी हो, जिसको न तो सत्ता का खौफ़ हो और नाही झूठे मुकदमो का, न समाज के बाहुबलियों का। एक प्रखर वक्ता, लेखक,मुखमंडल में चमक लिए मानो कोई सिपाही हो जो किसी गरीब व कमजोर की आवाज़ बनकर असत्य से टकरा जाए.. पर जैसे जैसे वक्त बढ़ते गया राजनीति पत्रकारिता में हावी होते गयी साथ ही पत्रकारों की छवि भी धूमिल करती गयी। “कुछ पत्रकार पत्रकार न होकर भी यूट्यूबर व पक्षकार बन अपनी तिजोरी भरते जा रहे है


बिन पगार पूरी तरह जनता के हित मे तैयार रहने वाले कलम के पुजारी अपने नैतिक मूल्य को निभा रहे है । वही यूट्यूबर केवल किसी न किसी के पक्षकार बनके जनता को वही खबर परोसने में लगे है जो उन्हे उनके मालिक या नेता अपने हिसाब से बनाये थे। आज तो आपको हर चौथी गाड़ी में press या media लिखा दिख जायेगा।चाहे वह यूट्यूबर ही क्यों ना हो

पत्रकारिता के क्षेत्र में दिन प्रतिदिन गिरावट आ रही है इस मुद्दे पर आज देश में गर्मा-गर्म बहस भी छिड़ चुकी है। देश के लोकतंत्र का मजबूत चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला पत्रकारिता का क्षेत्र भी अब इस भ्रष्टाचार से अछूता नही रहा। आज पैसे की चमक ने पत्रकारिता के मिशन को व्यवसाय बना दिया।

आज पत्रकारिता के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन बढ़ती तादाद में अशिक्षित,कम पढ़े लिखे और अप्रशिक्षित संवाददाताओं की एक बड़ी दिशाहीन सेना का प्रवेश भी पत्रकारिता के क्षेत्र में भ्रष्टाचार बढ़ाने में बड़ा योगदान दे रहा है। ये वो लोग है जो जेब में कलम लगाकर रोज सुबह शाम सरपँच, जनप्रतिनिधियों, सरकारी अफसरों और दफ्तरों के चक्कर काटते रहते है।रीवा मानो पत्रकारों का गढ़ बन गया है अब ये पत्रकार सच्चे हैं या झूठे ये वक्त ही बताएगा।

बैग पकड़ बाईक उठा चल पड़े रोजी रोटी की तलाश में–

रीवा में कुछ कथित पत्रकारों की सेना ऐसी है जिन्हें पत्रकारिता सबसे आसान व्यवसाय लगता है क्योंकि विभाग,पँचायत औऱ अन्य संस्थानों में जाकर, खबर प्रकाशन और आरटीआई का धौंस दिखाकर,या अन्य तिकड़मबाजी से पैसों की मांग की जाती है ऐसी शिकायत आये दिन विभाग के अधिकारियों और सरपंचों से सुनने को मिलते रहती है। और ये अधिकारी,जनप्रतिनिधि और कर्मचारी ऐसे लोगों से परेशान तो हैं लेकिन कौन टेंशन पाले ये सोचकर 200-400 देकर चलता करने में विश्वास रखते है। जिनसे ऐसे कथित पत्रकारों का मनोबल और बढ़ता जाता है।

अधिकारी, सरपँच ही बढ़ा रहे ऐसे पत्रकारों का मनोबल–

कोई आपको ठगे ये उसकी चालाकी तो है लेकिन आपकी कमजोरी भी है। आज 3000-5000 खर्च करके कोई भी किसी भी तथाकथित चैनल का रिपोर्टर या यूट्यूबर बन जा रहा है,क्योंकि इससे सस्ता और अच्छा कमाई का साधन वर्तमान में नही है। लेकिन अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को भी इतनी समझ तो रखनी होगी कि जो व्यक्ति उनके समक्ष आया है उक्त पत्रकार द्वारा समाचार लगाया जाता है या नही, वो किस क्षेत्र का पत्रकार है, उसकी विशेषता क्या है? इन सबसे न तो सरपंचों को मतलब रहता है न ही विभागीय अधिकारियों को। और फिर बाद में सिर पीटते नज़र आएंगे की पत्रकारों ने परेशान कर दिया है। ये तो मानो हिंदी फिल्म स्पेशल 26 की कहानी हो गयी।अधिकारियों – सरपंचों को चाहिए कि ना वह भ्रष्टाचार में रहें और ना ही किसी को पैसे दे।

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