उत्तर प्रदेश

Uttar Pradesh: विवाह के दिन पिता की मौत, सैनिकों ने निभाया पिता का कर्तव्य और किया कन्‍यादान

Uttar Pradesh के मथुरा जिले के मंत क्षेत्र में एक दिल छूने वाली घटना घटी, जब एक सैनिक, जो अपनी बेटी की शादी के लिए घर आया था, सड़क दुर्घटना में निधन हो गया। पिता की असमय मौत के बाद परिवार में शादी की तैयारियों को अचानक रोकना पड़ा। लेकिन जब इस दुखद घटना का पता देवेंद्र सिंह के साथी सैनिकों को चला, तो उन्होंने पिता का कर्तव्य निभाया और बेटी का कन्‍यादान किया। यह घटना एक बार फिर से यह साबित करती है कि भारतीय सेना सिर्फ युद्ध के मैदान में ही नहीं, बल्कि जीवन के अन्य पहलुओं में भी साथ खड़ी रहती है।

देवेंद्र सिंह का निधन और शादी की तैयारियों का रुकना

मथुरा जिले के बकला गांव के रहने वाले 48 वर्षीय देवेंद्र सिंह अपनी बेटी की शादी के लिए छुट्टी पर घर आए थे। वह 7 दिसंबर को अपनी बेटी की शादी की तैयारी में व्यस्त थे, लेकिन इससे दो दिन पहले मंत-राया सड़क मार्ग पर एक सड़क दुर्घटना में उनका निधन हो गया। जैसे ही परिवार को इस दुखद खबर का पता चला, घर में मातम पसर गया और शादी की सभी तैयारियां रुक गईं।

देवेंद्र सिंह के रिश्तेदार नरेंद्र ने बताया कि जैसे ही पिता की मौत की खबर मिली, शादी की पूरी तैयारी रुक गई और घर के लोग हतप्रभ रह गए। बेटी का दिल टूट चुका था और वह पिता के बिना विवाह के ख्याल से बहुत परेशान थी। शादी की सारी खुशियां पल भर में मातम में बदल गईं और पूरी शादी की प्रक्रिया रुक गई।

Uttar Pradesh: विवाह के दिन पिता की मौत, सैनिकों ने निभाया पिता का कर्तव्य और किया कन्‍यादान

सैनिकों ने निभाया पिता का कर्तव्य

देवेंद्र सिंह की असमय मृत्यु के बाद, परिवार में यह चिंता होने लगी कि अब कन्‍यादान कौन करेगा। कन्‍यादान भारतीय संस्कृति का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो बाप ही अपनी बेटी का विवाह करते समय निभाता है। ऐसे में यह सवाल खड़ा हुआ कि आखिर बेटी का कन्‍यादान कौन करेगा। इसी बीच देवेंद्र के साथियों को उनके निधन का पता चला, और उन्होंने तुरंत अपनी भूमिका निभाने का फैसला किया।

मंच थाना प्रभारी रंजीत वर्मा ने बताया कि देवेंद्र सिंह के निधन के बाद उनके जाट बटालियन के सैनिकों ने मदद की पेशकश की। उनके कमांडिंग ऑफिसर ने सैनिकों को बकला गांव भेजने का निर्देश दिया। इस तरह, देवेंद्र के साथी सैनिकों की एक टीम बकला गांव पहुंची, जिसमें सूबेदार सोनवीर सिंह, सूबेदार मुकेश कुमार, हवलदार प्रेमवीर, विनोद और बेटाल सिंह शामिल थे। इन सैनिकों ने सिर्फ कन्‍यादान ही नहीं किया, बल्कि शादी की सभी तैयारियों में भी पूरा सहयोग दिया।

कन्‍यादान के दौरान भावुक दृश्य

जब कन्‍यादान की रस्म शुरू हुई, तो यह दृश्य सबके लिए बहुत भावुक था। जब सैनिकों ने शादी के समारोह में भारतीय सेना की वर्दी पहनकर कन्‍यादान किया, तो वहां मौजूद हर किसी की आंखों में आंसू थे। यह क्षण सभी के लिए दिल को छूने वाला था, क्योंकि यह दिखाता था कि सैनिक सिर्फ युद्ध में ही नहीं, बल्कि सामान्य जीवन में भी परिवारों के साथ खड़े रहते हैं। इस संवेदनशील पल में देवेंद्र की बेटी ने अपने पिता की याद में और सैनिकों के साथ इस महत्वपूर्ण रस्म को निभाया।

भविष्य में सहायता का वादा

सिर्फ कन्‍यादान ही नहीं, सैनिकों ने देवेंद्र सिंह के परिवार को आगे भी हर संभव सहायता देने का वादा किया। उन्होंने यह आश्वासन दिया कि परिवार को किसी भी प्रकार की मदद की आवश्यकता पड़े तो वे हमेशा साथ रहेंगे। सैनिकों ने अपनी वर्दी में होते हुए जिस तरीके से इस कठिन समय में देवेंद्र सिंह के परिवार का साथ दिया, वह उनके समर्पण और परिजनों के प्रति जिम्मेदारी का एक उदाहरण है।

परिवार की प्रतिक्रिया

देवेंद्र सिंह की बेटी ने कहा कि वह इस कन्‍यादान को कभी नहीं भूल पाएगी, क्योंकि यह न सिर्फ उसके पिता के बिना शादी का एक कठिन पल था, बल्कि उसे यह महसूस हुआ कि भारतीय सेना केवल सीमा पर ही नहीं, बल्कि परिवार के भीतर भी अपना कर्तव्य निभाती है। उन्होंने सैनिकों का दिल से धन्यवाद किया और कहा कि यह क्षण उनकी जिंदगी का सबसे अहम और भावुक पल होगा।

भारतीय सेना की मानवता और सहयोग

यह घटना भारतीय सेना की मानवीय पहलू को उजागर करती है। भारतीय सेना के सैनिकों की यह मिसाल साबित करती है कि सैनिक सिर्फ देश की रक्षा करने के लिए नहीं, बल्कि समाज के हर पहलु में योगदान देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। यह घटना हमें यह सिखाती है कि असली सैनिक वही होते हैं जो मुश्किल वक्त में अपने देशवासियों के साथ खड़े रहते हैं और हर रूप में उनकी मदद करते हैं।

देवेंद्र सिंह की बेटी का कन्‍यादान भारतीय सेना द्वारा निभाया गया एक संवेदनशील और मानवता से भरा कदम था। यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि जीवन के कठिन समय में सहयोग और समर्थन कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय सेना ने अपनी वर्दी के माध्यम से यह साबित किया कि वह न सिर्फ सीमा पर बल्कि समाज के भीतर भी अपने कर्तव्यों का निर्वाह करती है।

इस घटना ने साबित कर दिया कि सैनिक केवल अपने परिवार के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए भी अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियों को निभाने में तत्पर रहते हैं।

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