UP में ढहा तस्करी का साम्राज्य, पर रीवा रेंज में उठे तूफ़ानी सवाल, क्या आरोपी को बचा रहे हैं रेंज के अफ़सर?”
UP में ‘ऑपरेशन क्लीन’, रीवा रेंज में ‘ऑपरेशन साइलेंस’ आख़िर माजरा क्या है?”

रीवा/लखनऊ।
सीमापार नशा नेटवर्क पर उत्तर प्रदेश पुलिस की तेज़, योजनाबद्ध और लगातार कार्रवाई ने कई जिलों में कोरेक्स तस्करी की जड़ों को हिलाकर रख दिया है। यूपी की ओर से हुई यह कड़ी मुहिम अब पूरे क्षेत्र के लिए एक मिसाल के रूप में देखी जा रही है। वहीं दूसरी ओर, मध्यप्रदेश के रीवा रेंज में इसी मुद्दे पर उठ रहे सवालों की परतें गहराती जा रही हैं—मानो एक ही कहानी दो अलग दिशाओं में घूम रही हो।
क़ानून व्यवस्था की तुलना में यह अंतर जनता के बीच चर्चा का बड़ा मुद्दा बना हुआ है। एक ओर यूपी पुलिस का दृढ़ रवैया दिखाई देता है, वहीं दूसरी तरफ रीवा रेंज में तस्करी मामलों पर कार्रवाई की प्रक्रियाएँ सवालों में घिरी हुई दिखाई पड़ती हैं। जनता पूछ रही है कि—एक ही देश, एक जैसा कानून, पर दो अलग-अलग परिणाम क्यों?
UP की कार्रवाई ,बेहद तेज़, ठोस और सीधी
उत्तर प्रदेश पुलिस ने पिछले महीनों में कोरेक्स तस्करी नेटवर्क पर जिस प्रकार सघन दबिशें दीं, उसने न केवल कई बड़े नाम उजागर किए, बल्कि नेटवर्क की रीढ़ भी तोड़ दी।
सूत्र बताते हैं कि विभिन्न जिलों में की गई संयुक्त कार्रवाई के दौरान कई महत्वपूर्ण कड़ियाँ सामने आईं। इन्हीं कड़ियों के आधार पर भोला जायसवाल जैसे संदिग्ध को, कथित रूप से विदेश भागने से पहले ही रोका गया। यह गिरफ्तारी पूरे नेटवर्क को झकझोर देने वाली साबित हुई।
यूपी की इन कार्रवाइयों का संदेश स्पष्ट था..
“तस्करी की जड़ें कितनी भी मजबूत क्यों न हों, क़ानून का हाथ उनसे ज़्यादा मज़बूत है।”
रीवा रेंज ,कागज़ों में कार्रवाई, ज़मीन पर सुस्ती?
रीवा रेंज में कोरेक्स तस्करी को लेकर कई मामलों में कार्रवाई विभागीय जांचों तक सीमित दिखी है। आधिकारिक तौर पर किसी बड़े पुलिसकर्मी के खिलाफ कठोर कार्रवाई सामने नहीं आई है।
स्थानीय स्तर पर यह धारणा बन रही है कि कई मामलों की फाइलें आगे बढ़ने के बजाय सिर्फ चक्रों में घूम रही हैं।
स्थानीय चर्चाएँ माहौल को और गंभीर बना रही हैं
कई नागरिकों और सामाजिक समूहों का कहना है कि…
- कार्रवाई की गति अपेक्षा से कहीं धीमी क्यों है?
- क्या विभागीय जांचों का दायरा पर्याप्त है?
- क्या तस्करी मामलों में शामिल गिरोहों की जड़ तक पहुँचना प्राथमिकता बना हुआ है?
इन सवालों के जवाब जनता को अब तक स्पष्ट रूप से नहीं मिले हैं।
चाय-नमकीन की बैठकों पर भी उठे सवाल,पर पुष्टि नहीं :- स्थानीय चर्चाओं में यह बात भी ज़ोर पकड़ रही है कि कुछ अधिकारी—जिन पर कार्रवाई को लेकर संदेह की चर्चा की गई—IG कार्यालय में सामान्य बैठकों में देखे गए।
यह मुलाक़ातें वास्तविक रूप से किन विषयों पर थीं, इसकी आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन इन बैठकों ने सार्वजनिक चर्चाओं को हवा दी है, और इससे प्रक्रिया की पारदर्शिता पर प्रश्न और गहरे हुए हैं।
जनता के मन में यह सवाल उठ रहे हैं—
- क्या ये केवल औपचारिक मुलाक़ातें हैं?
- या क्या कुछ मामलों पर राजनीतिक/प्रशासनिक दबाव कार्रवाई की दिशा प्रभावित कर रहा है?
- क्या जांच तंत्र में ऐसी बाधाएँ हैं जिनका खुलासा अभी तक नहीं हुआ?
इन सवालों का उत्तर न पुलिस ने दिया, न प्रशासन ने।
तस्कर के नाम अलग करने की चर्चा—बहस तेज़, पर प्रमाण नहीं
स्थानीय स्तर पर एक और मुद्दा हवा में तैरता रहा—कि किसी मामले में कथित रूप से “किसी आरोपी को न छेड़ने” जैसी सलाह की बात सामने आई।
हालाँकि इस दावे की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं है, फिर भी इस तरह की चर्चाओं ने पुलिस तंत्र पर जनता का भरोसा कमज़ोर किया है।
लोगों की चिंता का कारण केवल आरोप नहीं है—बल्कि उन आरोपों पर स्पष्ट प्रतिक्रिया का न मिलना भी है।
एक बुज़ुर्ग नागरिक ने टिप्पणी करते हुए कहा—
“तालाब की सबसे बड़ी मछली अगर गंदगी फैलाए, तो तालाब पर कोई भरोसा नहीं करता।”
यह टिप्पणी अब कई स्थानीय मंचों पर गूँज रही है।
तस्कर पकड़े गए, पर नेटवर्क अभी भी सक्रिय?
कुछ गिरफ्तारियाँ होने के बावजूद स्थानीय लोग मानते हैं कि नेटवर्क पूरी तरह नहीं टूटा है।
उनका कहना है कि यदि तस्करी का स्रोत और उसके संरक्षक तत्वों तक कार्रवाई न पहुँचे, तो छोटी गिरफ्तारियाँ सिर्फ सतही सुधार भर साबित होंगी।
जनता की माँग “पारदर्शी, तेज़ और कठोर कार्रवाई हो”
रीवा, सतना, शहडोल और आसपास के जिलों में यह चर्चा आम है कि जब UP जैसे बड़े राज्य में कड़ी कार्रवाई से तस्करी का असर दिख रहा है, तो रीवा रेंज में वही प्रभाव क्यों नहीं दिख रहा?
जनता की आवाज़ लगातार तेज़ हो रही है—
- कार्रवाई का पूरा रिकॉर्ड सार्वजनिक किया जाए।
- जांच की प्रगति पर नियमित रिपोर्ट जारी हो।
- संदेहों को दूर करने के लिए पारदर्शिता बढ़ाई जाए।
- और यदि बाधाएँ हैं, तो उन्हें सार्वजनिक रूप से बताया जाए।
कुछ स्थानीय संगठनों ने यहाँ तक कहा—
“यदि कार्रवाई ईमानदार रूप से नहीं हो रही, तो इसके लिए उच्च स्तर पर जवाबदेही तय होनी चाहिए।”





