मध्यप्रदेश हाईकोर्ट से 150 ईसाई परिवारों को राहत, जबरन बेदखली पर रोक

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में 150 ईसाई परिवारों को राहत दी है और उनके जबरन बेदखली पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने यह आदेश दिया है। यह मामला तब सामने आया जब हाईकोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर कर ईसाई परिवारों को बेदखल किए जाने की कार्यवाही को चुनौती दी गई।
हाईकोर्ट का आदेश: जबरन बेदखली पर रोक
याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की खंडपीठ ने गैर-आवेदकों को नोटिस जारी किया और उनसे चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। इसके साथ ही, नज़ूल भूमि पर बने आवासीय भवनों को जबरन खाली कराने पर रोक लगा दी गई है।
क्या है पूरा मामला?
याचिकाकर्ता आसिम जोसेफ और तीन अन्य लोगों ने याचिका में उल्लेख किया है कि साल 1975 में राज्य सरकार ने 22 लाख 3515 वर्गफुट भूमि लूथरन चर्च (Lutheran Church) को लीज़ पर दी थी। इस जमीन पर चर्च, स्कूल, हॉस्टल और घर बने हुए हैं।
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि चर्च के बिशप (Bishop) ने इस लीज़ की गई भूमि पर अवैध रूप से निर्माण कार्य करवाया। इस मुद्दे को लेकर पहले जिला कलेक्टर से शिकायत की गई थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद, आवेदकों की शिकायत पर बिशप और अन्य आरोपियों के खिलाफ पांच एफआईआर (FIRs) दर्ज की गईं।
लीज़ रद्द, चर्च कमेटी भंग
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि चर्च की भूमि का व्यावसायिक उपयोग (commercial use) किया जा रहा था, जिसके चलते जिला कलेक्टर ने 3 जनवरी 2025 को लीज़ रद्द कर दी। साथ ही, चर्च की समिति को भंग कर दिया गया और अतिरिक्त कलेक्टर छिंदवाड़ा को प्रशासक नियुक्त किया गया।
हालांकि, चर्च की संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया, जिससे सवा सौ से अधिक परिवारों के सिर से छत छिनने की नौबत आ गई।
सरकार का पक्ष
सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से दलील दी गई कि मध्यप्रदेश नज़ूल भूमि विमोचन निर्देश, 2020 (Madhya Pradesh Nazul Land Release Directive, 2020) की धारा 145 (1) के तहत याचिकाकर्ता को उच्च अधिकारी के समक्ष अभ्यावेदन प्रस्तुत करने का प्रावधान है।
सरकार ने यह भी कहा कि यदि कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया तो इन परिवारों को बलपूर्वक हटाया जा सकता है।
याचिकाकर्ता का पक्ष
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में दलील दी कि इस पूरी प्रक्रिया के दौरान इन परिवारों को जबरन बेदखल किया जा सकता है। उन्होंने हाईकोर्ट से अपील की कि जब तक कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक जबरन कार्रवाई पर रोक लगाई जाए।
हाईकोर्ट का फैसला
सभी पक्षों को सुनने के बाद, खंडपीठ ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता दो सप्ताह के भीतर संबंधित अधिकारी को आवेदन दें। इसके अलावा, संबंधित अधिकारी को छह सप्ताह के भीतर अभ्यावेदन का निपटारा करने का निर्देश दिया गया।
कोर्ट ने साफ कर दिया कि तब तक किसी भी परिवार को जबरन नहीं हटाया जाएगा।
न्यायिक प्रक्रिया जारी
हाईकोर्ट ने इस मामले में गैर-आवेदकों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है। इस पूरी सुनवाई में याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट दिनेश उपाध्याय (Advocate Dinesh Upadhyay) ने पैरवी की।
परिवारों को राहत, आगे क्या होगा?
इस फैसले से 150 ईसाई परिवारों को अस्थायी राहत मिली है, लेकिन मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है। यदि सरकार का जवाब संतोषजनक नहीं हुआ, तो हाईकोर्ट आगे का फैसला सुनाएगा।
यह मामला भूमि विवाद और धार्मिक स्थलों पर अवैध निर्माण से जुड़ा एक जटिल मुद्दा बन चुका है। जहां सरकार का कहना है कि लीज नियमों का उल्लंघन हुआ है, वहीं प्रभावित परिवारों का कहना है कि वे वर्षों से इस भूमि पर रह रहे हैं और उन्हें जबरन हटाया जा रहा है।
हाईकोर्ट ने इस मामले में संतुलित रुख अपनाते हुए न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने तक बेदखली पर रोक लगा दी है। अब आगे की कार्रवाई सरकार की प्रतिक्रिया और कोर्ट की अगली सुनवाई पर निर्भर करेगी।