Madhya Pradesh High Court: बाढ़ प्रभावित किसानों के वयस्क बेटों को भी मिलेगा मुआवजा! सरकार से पूछे सवाल

Madhya Pradesh High Court ने ओंकारेश्वर बांध से प्रभावित किसानों के वयस्क बेटों को भी मुआवजा देने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा और न्यायमूर्ति अवनीन्द्र कुमार सिंह की खंडपीठ ने सरकार को दो महीने का समय दिया है ताकि वह इस मामले में विचार कर सके और उचित कार्रवाई कर सके।
पृष्ठभूमि: 2013 में दिए गए आदेश की अहमियत
यह मामला वर्ष 2013 से जुड़ा हुआ है, जब 7 जून 2013 को नर्मदा बचाओ आंदोलन की याचिका पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए विशेष पैकेज देने का आदेश दिया था। इस आदेश में कहा गया था कि सरकार को उन सभी लोगों को मुआवजा देना होगा, जो ओंकारेश्वर बांध के कारण प्रभावित हुए थे।
हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने यह दावा किया था कि सरकार ने विस्थापितों को इस पैकेज का 15% लाभ दिया, लेकिन यह लाभ सभी पात्र लोगों तक नहीं पहुंच पाया। विशेष रूप से, बाढ़ से प्रभावित किसानों के वयस्क बेटों को इस विशेष पैकेज का लाभ नहीं दिया गया, जो कि उनके अनुसार न केवल गलत था, बल्कि यह कोर्ट के आदेश का उल्लंघन भी था।
कोर्ट का आदेश और सरकार पर सवाल
खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के बाद पाया कि सरकार बाढ़ प्रभावित किसानों के वयस्क बेटों को मुआवजा देने में पूरी तरह से लापरवाह रही है। अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि वह इन वयस्क बेटों को भी विशेष पैकेज के लाभ प्रदान करने पर विचार करे। इस मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट मनोज शर्मा ने बहस की।
कोर्ट ने सरकार को इस मामले में दो महीने का समय दिया है ताकि सरकार इस मुद्दे पर त्वरित कार्रवाई कर सके और मुआवजा वितरण की प्रक्रिया को ठीक से लागू किया जा सके। इसके अलावा, अदालत ने सरकार से यह भी सवाल किया कि क्यों इस वर्ग को अभी तक मुआवजा नहीं दिया गया है, जबकि वे भी इस पैकेज के लिए पात्र थे।
वयस्क बेटों को मुआवजा क्यों नहीं मिला?
नर्मदा बचाओ आंदोलन के द्वारा दायर की गई याचिका में यह तर्क दिया गया था कि ओंकारेश्वर बांध के कारण जिन किसानों की ज़मीनें प्रभावित हुईं, उनके वयस्क बेटों को मुआवजे से वंचित रखा गया है। यह न केवल सरकार की असंवेदनशीलता को दर्शाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सरकार ने विस्थापितों के अधिकारों का उल्लंघन किया है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वयस्क बेटों को भी अपने परिवार के हिस्से के रूप में मुआवजा मिलना चाहिए था। जब किसानों को मुआवजा दिया जा रहा था, तो उनके वयस्क बेटे भी प्रभावित हुए थे, और उन्हें मुआवजा देने से इनकार करना संविधान और कानून के खिलाफ है। यह न केवल सामाजिक न्याय की अवधारणा के खिलाफ है, बल्कि यह सरकार के संवेदनशीलता के प्रति भी सवाल उठाता है।
कोर्ट का त्वरित निर्णय: क्या उम्मीदें पूरी होंगी?
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई का निर्देश दिया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि अदालत इस मामले को गंभीरता से ले रही है और सरकार से उम्मीद की जा रही है कि वह इस आदेश का पालन करेगी। सरकार को अब दो महीने के भीतर इस पर विचार करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि बाढ़ प्रभावित किसानों के वयस्क बेटों को मुआवजा मिले।
राज्य सरकार के लिए यह एक अहम परीक्षा है, क्योंकि यदि वह अदालत के आदेश को नहीं मानती है, तो इससे न केवल उसकी छवि पर असर पड़ेगा, बल्कि यह कानूनी कार्रवाई का कारण भी बन सकता है। इस समय, इस मुद्दे पर राजनीति भी गर्मा गई है, क्योंकि यह मामला सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
सरकार का पक्ष और वकील की दलील
सरकार की ओर से इस मामले में कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है, लेकिन यह कहा जा रहा है कि सरकार ने बाढ़ प्रभावित किसानों को मुआवजा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। वहीं, याचिकाकर्ताओं के वकील मनोज शर्मा का कहना है कि सरकार ने जानबूझकर वयस्क बेटों को मुआवजा देने से इनकार किया है और यह पूरी प्रक्रिया में असमानता और पक्षपाती व्यवहार की ओर इशारा करता है।
वह यह भी कहते हैं कि यह आदेश न केवल प्रभावित किसानों के लिए, बल्कि उनके वयस्क बेटों के लिए भी न्याय दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उनका मानना है कि इस आदेश से न केवल मुआवजे के वितरण में सुधार होगा, बल्कि भविष्य में ऐसे मामलों में राज्य सरकार की जवाबदेही को भी बढ़ावा मिलेगा।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का यह आदेश किसानों और उनके वयस्क बेटों को मिलने वाले मुआवजे के मामले में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यह सरकार के लिए एक चेतावनी है कि वह अपनी जिम्मेदारी से पीछे न हटे और अदालत के आदेश का पालन करे। इस मुद्दे से यह भी स्पष्ट होता है कि सरकार को अपनी नीतियों और कार्यप्रणाली में सुधार करने की जरूरत है ताकि सभी प्रभावित वर्गों को समान रूप से लाभ मिल सके।
आखिरकार, यह मामला सामाजिक न्याय और नागरिक अधिकारों की रक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। अदालत का फैसला उम्मीद है कि न केवल प्रभावित किसानों के लिए, बल्कि उनके परिवार के अन्य सदस्यों के लिए भी मुआवजा प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करेगा।