Siddharth Nigam: ‘आज़ाद’ फिल्म से कैसे बाहर हुए सिद्धार्थ निगम? पर्दे के पीछे की कहानी आई सामने

साल 2024 में जब अजय देवगन के भतीजे अमन देवगन और रवीना टंडन की बेटी रशा ठडानी ने फिल्म ‘आज़ाद’ से बॉलीवुड में डेब्यू किया तो ये खबर खूब चर्चा में रही। लेकिन अब इस फिल्म को लेकर एक नया खुलासा सामने आया है। पहले इस फिल्म के लिए टीवी और फिल्म इंडस्ट्री में पहचाना नाम सिद्धार्थ निगम को कास्ट किया गया था लेकिन आखिरी वक्त पर उन्हें फिल्म से हटा दिया गया। अब सिद्धार्थ की मां विभा निगम ने खुलकर इस बात पर अपनी प्रतिक्रिया दी है और बॉलीवुड में नेपोटिज्म को लेकर सवाल उठाए हैं।
विभा निगम ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनके बेटे सिद्धार्थ को इस फिल्म के लिए पहले चुना गया था। वह खुद उसे लेकर फिल्म की मीटिंग में गई थीं और पूरी स्क्रिप्ट भी सुनाई गई थी। विभा ने कहा, “मुझे लगा कि यह फिल्म सिद्धार्थ के करियर की एक बड़ी शुरुआत होगी। मेकर्स ने कहा था कि हमें एक साल इंतजार करना होगा। हम तैयार थे। लेकिन दो साल बाद सिद्धार्थ ने जब फिल्म का पोस्टर दिखाया तो उसमें अमन देवगन और रशा ठडानी को लीड रोल में देखा। तब हमें समझ आया कि फिल्म तो बन चुकी है और रिलीज भी हो गई।”
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बेटे के लिए दुख, लेकिन भरोसा भी कायम
विभा ने आगे कहा, “मुझे बहुत बुरा लगा। एक मां के तौर पर यह देखना बहुत दुखद था कि जिस फिल्म के लिए मेरा बेटा दो साल तक उम्मीदों के साथ इंतजार करता रहा उसे उस प्रोजेक्ट से ही निकाल दिया गया। सिद्धार्थ ने जब मुझसे यह कहा कि इसमें किसी की गलती नहीं है और यह केवल बिजनेस है तो मैं चुप रह गई। लेकिन एक मां के दिल में जो टीस होती है वह कौन समझेगा।” उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें यकीन है कि सिद्धार्थ का टैलेंट एक दिन जरूर सबको नजर आएगा और उसे उसका हक मिलेगा।
बॉलीवुड में बाहरी कलाकारों को क्यों नहीं मिलते मौके?
इस मामले ने एक बार फिर बॉलीवुड में नेपोटिज्म की बहस को हवा दे दी है। विभा ने साफ कहा कि इंडस्ट्री में बाहर से आए कलाकारों के साथ भेदभाव होता है। टैलेंट होने के बावजूद उन्हें मौके नहीं मिलते। सिद्धार्थ निगम ने छोटे पर्दे पर कई बड़े रोल किए हैं और ‘धूम 3’ जैसी फिल्मों में भी नजर आ चुके हैं। बावजूद इसके उन्हें एक सुनहरा मौका केवल इसलिए नहीं मिला क्योंकि कोई स्टार किड फिल्म के लिए आ गया। ऐसे मामलों से यह सवाल उठता है कि क्या बॉलीवुड में सच में टैलेंट से ज्यादा पहचान मायने रखती है? और अगर ऐसा ही चलता रहा तो टैलेंटेड युवाओं का हौसला कैसे बढ़ेगा?