लेख

बाज़ार में निर्णय की घड़ी: भारत के साथ या भारत विरोधियों के साथ?

त्योहारों का शुभ अवसर फिर आ रहा है। राखी से लेकर दीपावली तक, हर बाज़ार जगमगाएगा, उपभोक्ताओं के मन में उत्साह उमड़ेगा, और हर घर के आँगन में उपहार, श्रृंगार एवं सजावट का सामान का अहर्निश आगमन होगा। परंतु साथ ही यह वह समय है जब हर भारतीय के भीतर एक सूक्ष्म अंतरात्मा जाग्रत होती है, जो पूछती है  क्या मेरा चुनाव देश के हित में है? क्या मेरा उपभोग ‘भारत के साथ’ है या ‘भारत विरोधियों’ के साथ?

वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में युद्ध की नई परिभाषा आर्थिक द्वंद्व बन चुकी है। अब परंपरागत सेनाएँ नहीं, बल्कि टैरिफ, व्यापार प्रतिबंध, और बाजार हेरफेर के माध्यम से राष्ट्रों को गिरोहबद्ध किया जा रहा है। अमेरिका सहित कई देशों ने भारत के व्यापारिक उत्पादों पर ऊँचे टैरिफ लगा रखे हैं, निरंतर धमकी दी जा रही है। रूस से सस्ता तेल खरीदने पर दबाव डाला जा रहा है। दूसरी ओर, चीन की बाज़ारी तरंगें अपनी सस्ती, लेकिन गुणवत्ताहीन वस्तुओं के साथ भारतीय कारीगरों, छोटे व्यवसायों और स्टार्टअप्स के जीवन को संकटग्रस्त कर रही हैं।

मेरी दृष्टि में यह केवल व्यापार नहीं, एक आर्थिक युध्द है, जिसमें भारत को आत्मनिर्भर, विकसित राष्ट्र बनने से रोकने की रणनीति रची जा रही है। साथ ही, पाकिस्तान जैसे आतंकवाद समर्थित देशों को कुछ अंतरराष्ट्रीय शक्तियाँ आर्थिक व सामरिक रूप से सशक्त कर रही हैं। क्या यह आर्थिक आतंकवाद और हमारी सुरक्षा के लिए एक बड़े खतरे का आधुनिक प्रतिरूप नहीं?

ऐसे दौर में, भारत के उपभोक्ताओं की सूझबूझ, सही उत्पाद का चयन ही राष्ट्र के भविष्य का निर्धारण करेगा। हर भारतीय को यह दृढ़ संकल्प करना होगा कि जब भी वह बाजार से कोई वस्तु खरीदे या व्यापार करे, विशेषकर त्योहारों में, वह उस देश का चुनाव न करे जो भारत की सीमाओं पर हथियार खड़ा करता है, भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खड़ा होता है, या हमारे विकास को बाधित करता है। अब सवाल केवल यह नहीं है कि वस्तु सस्ती या सुंदर है, बल्कि यह है कि क्या उसका चयन हमारे राष्ट्र के हित में है?

हम भारतीयों को स्वयं निर्णय लेना होगा कि आगामी त्योहारों जैसे रक्षाबंधन पर क्या राखियाँ चीन से आयेंगी या भारत के कारीगरों के हाथों से बनी होंगी? श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की झांकियाँ, दीपक और सजावट के लिए क्या विदेशी प्लास्टिक की वस्तुओं का चयन करेंगे या स्वदेशी शिल्पकारों के श्रम को बढ़ावा देंगे? नवरात्रि और दुर्गा पूजा के पूजन-सामग्री, सजावट और श्रृंगार में ‘मेड इन इंडिया’ वस्तुएँ लेने का संकल्प करेंगे या पुनः विदेशी विकल्प चुनेंगे? दिवाली की रोशनी, उपहार, मिठाइयाँ और साज-सज्जा आदि का सामान क्या स्वदेशी ब्रांड्स का समर्थन करेंगे? भैया दूज पर क्या उपहार भारत में बने होंगे? त्यौहार ही क्यों हमेशा ही हमें “भारत में, भारतीयों द्वारा बने उत्पाद” को महत्व देने का संकल्प लेना होगा। क्योंकि  यह भारत की आर्थिक स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता की कवायद है,पारिवारिक बजट के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने वाले यज्ञ में आहुति है।यह स्वदेशी यज्ञ निश्चित रूप से मंगल करेगा  लाखों स्थानीय कारीगरों का, महिला स्व-सहायता समूहों का , स्वरोजगार करने वाले युवाओं और छोटे उद्यमियों का ,और अंत में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को।

हमें यह भी समझना होगा कि राष्ट्रभक्ति का स्वरूप अब केवल झंडा फहराने तक सीमित नहीं रहा। ‘आर्थिक विवेक’ ही आज की सबसे बड़ी राष्ट्रभक्ति है। हर ‘मेड इन इंडिया’ उत्पाद की बिक्री एक सैनिक की हिम्मत है, एक किसान की उपज है, एक शिल्पकार की आशा है और भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में एक निर्णायक कदम है। वहीं,भारत के खिलाफ खड़े,भारत की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने में लगे विदेशी देशों के उत्पादों का  चयन हमारी आर्थिक स्वतंत्रता और आत्मसम्मान को चोट पहुँचाने का आकर्षक सामना।

अतः त्योहारों के दिन मात्र बधाई देने या खुशियाँ बाँटने के लिए नहीं, अपितु राष्ट्रीय चरित्र निर्माण का भी अवसर है। जब अगली बार बाज़ार जाएँ, तो खुद से यह प्रश्न अवश्य पूछें “क्या मैं भारत के साथ हूँ, या भारत विरोधियों के साथ?” यदि उत्तर ‘भारत के साथ’ है, तो खरीदारी के पहले पैकेजिंग का लेबल ज़रूर पढ़ें, क्योंकि हर उपभोक्ता आज एक सिपाही है, और हर स्वदेशी उत्पाद भारत विरोधी आर्थिक हथियारों के विरुद्ध एक गोलाबारी है।

लेखक: डॉ. मनमोहन प्रकाश

Leave a Reply

Back to top button

Discover more from Media Auditor

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue Reading

%d