मध्य प्रदेश

अंबेडकर जयंती पर मंदिर दर्शन को लेकर विवाद, दूल्हे को पुलिस सुरक्षा में मिला प्रवेश

इंदौर जिले के सांघवी गांव में संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की 134वीं जयंती के दिन एक जातीय विवाद की चिंगारी भड़क उठी। मामला उस समय गरमाया जब अनुसूचित जाति समुदाय के एक दूल्हे को श्रीराम मंदिर में प्रवेश को लेकर बहस का सामना करना पड़ा। यह गांव मऊ से करीब 25 किलोमीटर दूर है, जहां डॉ. अंबेडकर का जन्म हुआ था। दूल्हा अपनी बारात के साथ मंदिर पहुंचा था, लेकिन कुछ लोगों के विरोध के कारण मामला गरमा गया। बाद में पुलिस की मौजूदगी में दूल्हा मंदिर में दर्शन कर सका।

मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश को लेकर हुआ था विवाद

घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें दूल्हा बारात के साथ मंदिर के बाहर खड़ा दिख रहा है और वहां कुछ लोगों से उसकी बहस हो रही है। वहीं दूसरे वीडियो में दूल्हा अपने परिवार के साथ पुलिस की मौजूदगी में मंदिर में दर्शन करता दिखाई देता है। पुलिस के अनुसार, विवाद मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश को लेकर हुआ था। थाना प्रभारी मीना कर्णावत ने बताया कि “मंदिर में कोई भी भक्त गर्भगृह में प्रवेश नहीं करता, केवल पुजारी ही गर्भगृह में प्रवेश करते हैं।”

अंबेडकर जयंती पर मंदिर दर्शन को लेकर विवाद, दूल्हे को पुलिस सुरक्षा में मिला प्रवेश

पुलिस ने किया स्पष्ट, दूल्हे को नहीं रोका गया मंदिर प्रवेश से

पुलिस ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि दूल्हे को मंदिर में प्रवेश करने से नहीं रोका गया था। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार पुलिस ने बयान जारी कर कहा, “सांघवी गांव में दूल्हे को मंदिर में प्रवेश से नहीं रोका गया। दूल्हा और उसके परिवार ने शांति से पूजा की और बारात आगे बढ़ी।” हालांकि बारात पक्ष गर्भगृह में प्रवेश करना चाह रहा था, जो कि मंदिर की परंपरा के अनुसार सिर्फ पुजारी के लिए ही सीमित है।

समुदाय में आक्रोश, जातीय भेदभाव पर उठे सवाल

दूल्हा बलाई समाज से था और इस घटना के बाद समुदाय में नाराजगी देखने को मिली। अखिल भारतीय बलाई महासंघ के अध्यक्ष मनोज परमार ने कहा, “कुछ लोगों की संकीर्ण मानसिकता के कारण हमारे समुदाय को आज भी गांवों में जातीय भेदभाव का सामना करना पड़ता है।” लगभग दो घंटे तक चले हंगामे के बाद पुलिस की मध्यस्थता से मामला शांत हुआ और दूल्हे को मंदिर में दर्शन करने दिए गए। यह घटना एक बार फिर दर्शाती है कि समाज में जातीय समानता की दिशा में अभी भी लंबा सफर तय करना बाकी है।

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