हड़कंप! पत्रकार को फँसाने की साजिश, दागी दारोगा के खेल का पर्दाफाश,IG से निर्णायक कदम की माँग तेज़

रीवा। जिले में एक पत्रकार को कथित रूप से फँसाने के लिए “फर्जी तस्कर” बनवाने की कोशिश का मामला पुलिस प्रशासन के लिए गहरे असहज सवाल छोड़ गया है। घटनाक्रम बीते कुछ दिनों से लगातार चर्चा में है और इसकी परतें खुलने के साथ ही पुलिस-प्रणाली के भीतर कथित मिलीभगत, लापरवाही और अनुशासनहीनता पर गंभीर बहस तेज़ हो गई है।
सूत्र बताते हैं कि मामला तब उभरा जब दारोगा द्वारा संदिग्ध व्यक्तियों से बातचीत के आधार पर तैयार की गई तथाकथित “सूचना” को विभाग के ऑफिशियल व्हाट्सऐप ग्रुप में डाला गया। इस सूचना में एक पत्रकार का नाम जोड़ने की कोशिश दिखाई दी, जिससे यह संदेह और गहरा हो गया कि कहीं पूरा प्रयास पत्रकार को दबाव में लाने की रणनीति तो नहीं था। मामला सार्वजनिक होते ही यह प्रश्न भी उठ खड़ा हुआ कि क्या विभाग में कुछ कर्मियों को इतनी छूट मिल चुकी है कि वे बिना पुष्टि के किसी नागरिक को तस्कर या आरोपी घोषित करने जैसे संवेदनशील कदम उठा सकें।
मामले को लेकर संबंधित पत्रकार ने उच्चाधिकारियों को विस्तृत लिखित शिकायत सौंप दी है। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि कुछ पुलिस अधिकारी न सिर्फ लापरवाह थे, बल्कि उन्होंने संदिग्ध व्यक्तियों के साथ मिलकर तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करने की कोशिश की। शिकायत में यह भी कहा गया है कि यदि ऐसे अधिकारियों की “अनुशासनहीनता” पर रोक नहीं लगी, तो पुलिस की विश्वसनीयता पर स्थायी क्षति हो सकती है। पत्रकार ने स्पष्ट रूप से विभागीय जांच, आरोपित कर्मियों की ज़िम्मेदारी तय करने और कार्रवाई सुनिश्चित करने की मांग की है।
इस प्रकरण ने जिले के मीडिया जगत में भी खलबली मचाई है। उनका कहना है कि यदि किसी भी अधिकारी ने निजी द्वेष या दबाव बनाने के उद्देश्य से किसी पत्रकार पर “फर्जी तस्करी” जैसी गंभीर छवि आरोपित करने की कोशिश की है, तो यह न सिर्फ अनैतिक है, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतिकूल भी है। पत्रकार संगठनों ने प्रशासन से मांग की है कि जांच निष्पक्ष, पारदर्शी और समयबद्ध हो, ताकि न तो किसी निर्दोष पर दाग लगे और न ही किसी दोषी को बचाया जा सके।
इधर, मामले को लेकर शहर के आम नागरिकों में भी असंतोष देखा जा रहा है। कई स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस पर पहले ही “बिना जांच के कार्रवाई” या “चयनात्मक सख़्ती” जैसे आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में यदि यह साबित होता है कि विभाग के कुछ अधिकारी अपने आधिकारिक प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किसी को बदनाम करने में कर रहे थे, तो यह पूरे प्रशासन की छवि को धूमिल करेगा। नागरिकों का कहना है कि शिकायत के बाद अब जिम्मेदारी सीधे-सीधे रीवा रेंज के आईजी पर आती है कि वे प्रकरण को किस गंभीरता से लेते हैं।
दूसरी तरफ, पुलिस विभाग की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। सूत्र यह भी बताते हैं कि विभाग के भीतर इस मामले को लेकर हलचल है, लेकिन कार्रवाई किस स्तर से शुरू होगी और किस अधिकारी तक पहुँचेगी, यह अब तक स्पष्ट नहीं है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि यदि ग्रुप में की गई पोस्ट वाकई बिना प्रमाण, बिना जांच और दबाव बनाने की नीयत से डाली गई थी, तो यह पुलिस नियमावली का गंभीर उल्लंघन माना जाएगा।
अब पूरा मामला जांच की मेज पर है। पत्रकार ने अपने आवेदन पर कार्रवाई की प्रतीक्षा जताई है और कहा है कि उसे सिर्फ निष्पक्ष जांच की उम्मीद है, न अधिक न कम।
इधर आमजन और मीडिया जगत की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि
क्या आईजी आरोपित अधिकारियों पर ठोस कार्रवाई करेंगे, या मामला धीरे-धीरे फाइलों के ढेर में गुम हो जाएगा?
रीवा जिले में यह प्रकरण इस समय एक आईने की तरह खड़ा है, जिसमें पुलिस व्यवस्था की जिम्मेदारियों, सीमाओं और जवाबदेही का पूरा चेहरा साफ दिखाई दे रहा है। प्रशासन की अगली कदम-चाल यह तय करेगी कि यह आईना टूटेगा, चमकेगा या धुँधला ही रहेगा।





